ईश्वर जीव का मिलन
नो दिन इस रीती से मुकाम करते भरत जी श्री राम जी से मिलने चले, तब चित्रकूट दर्शन हुए, जहाँ चित्रकूट दर्शन हुए कि भरत जी की सभी ग्लानि दूर हो गयी . भरतजी चित्रकूट दर्शनमात्र से आनंदरूप हो गये . रात्रि में तलहटी में ही विश्राम किया .
इधर श्री सीता जी को स्वप्न हुआ कि भरत जी मिलने आये है. साथ में अयोध्या की प्रजा है परन्तु सासू जी का वेष अमंगलमय है. रामजी ने कहा-- यह स्वप्न दुःख की वार्ता सुनानी पड़ेगी
उस समय भील लोग दौड़ते हुए श्री राम जी के पास आये. उन्होंने कहा - कोई भरत नाम का राजा आपसे मिलने आया है. साथ में चतुरांगिनी सेना है. जिससे ये पशु-पक्षी घबराहट से दौड़ रहे है. श्री रामजी विचार में पड़ गये . तब लक्ष्मण जी के मन में कुछ कुभाव आय. लक्ष्मण जी बोलो. मै जानता हु कि भरत साधू है परन्तु राज्य मिलने के पश्चात इनकी बुद्धि बिगड़ गई है. और स्वयं के राज्य को निष्कंटक करने आये है. सत्ता मिलते ही मनुष्य पागल बन जाता है
लक्ष्मण जी को बहुत क्रोध आया, रघुनाथ जी ने लक्ष्मण जी को हाथ पकड़कर अपने पास में बैठाया . श्री राम जी ने कहा … लक्ष्मण! भरत को ब्रह्मलोक का राज्य भी मिले तो भी इसको मद नहीं होगा ।
इस जगत में भरत जैसा भाई हुआ नहीं और होना भी नही . प्रात: काल हुआ . भरत जी ने वसिष्ठ ऋषि को वन्दन करके कहा …. गुरूजी! आज्ञा दो… मुझे ऊपर जाना है. श्री सीता रामजी की पर्णकुटी में जाऊंगा। आज आप सब पीछे से आना . वसिष्ठ जी ने कहा - तू जा बेटा । तेरी बहुत भावना है । तू आगे जा. हम पीछे से आ रहे है ।
शंकर भगवान माता पार्वती जी से कहते है की भरत जी के प्रेम का वर्णन कौन कर सकता है? भरत जी चित्रकूट को साष्टांग वन्दन करते हुए चले.
भरतजी की भावना थी की मेरे रामजी नंगे पैर वन में चलते है. मै रामजी का हूँ . यहाँ मै पैरो से चलकर नहीं जाऊँगा . इसलिए भारत जी साष्टांग प्रणाम करते हुए गये. अब देह का भान नहीं रहा . भरत जी रास्ता भूल गये. उस समय देवताओं ने पुष्प-वृष्टि करके मार्ग का संकेत दिय. भरत जी का प्रेम देखकर चित्रकूट के पत्थर भी पिघल गये
दूर से श्री सीताराम जी की पर्णकुटी दिखाई दी . तब तो भरत जी सब कुछ भूल गये. पर्णकुटी के दर्शन होते ही सबकी विस्मृति हो गयी . सुख नहीं, दुःख नहीं, देह का भान नहीं . भरत जी आनद में तन्मय हुए और रामकीर्तन करते जाने लगे. श्री रामजी जहा विराजते है, वह रामजी का धाम भी आनंदरूप है, वहाँ शोक आ सकता नहीं, यहाँ दुःख आ सकता नहीं, इस भूमि के ऊपर श्री राम के चरण चिह्न पड़े थे. उन्हें देखकर भरत जी रज में लोट रहे थे.
अहो ! मै कृतार्थ हो गया . आज मै श्री रामचन्द्र जी के चरनार्विंद के चिह्न से सुशोभित भूमि के दर्शन कर रहा हु. जिस चरण रज की ब्रह्मादी देवता और श्रुतिया निरंतर शोध कर रहे है
पर्णकुटी के चबूतरे पर श्री सीता राम जी विराजे थे. अनेक ऋषि वहाँ पधारे थे. सत्संग चल रहा थ. लक्ष्मण जी हाथ जोड़कर सेवा में खड़े थे. भरत जी श्री सीताराम , श्री सीताराम कीर्तन करते वन्दन करते वहाँ गये
भरत जी ने पर्णकुटी की परिक्रमा की . श्री सीताराम के दर्शन करते हुए अतिशय आनद हुआ . रामजी के एकदम सन्मुख जाने की उनकी हिम्मत हुई नहीं . गला भर आया . मुख में से एक शब्द भी नहीं निकला … 'मेरे राम' कहकर साष्टांग वन्दन किया .
लक्ष्मण जी ने कहा … रघुनाथ जी ! भरत भैया आये है. यह शब्द कान में आया की रामजी को अतिशय आनंद हुअ. काँधे पर धनुष था . उसका भी भान नहीं रहा। धनुष गिर गया, बाणों का तरकस गिर गया । वल्कल-वस्त्र गिर गये . बोलो मेरा भरत कहाँ है? कहाँ है मेरा भरत ? रामजी की आँखे भीनी हो गयी । भरत जी दीखे नहीं । लक्ष्मण जी रामचन्द्र जी को आगे ले आये । रामजी ने भरत जी को साष्टांग प्रणाम करते देखा । इन्होने भरत जी को उठाकर आलिंगन किया …
चित्रकूट में जीव-इश्वर का मिलन हुआ । चित्रकूट श्रीराम जी लक्ष्मण जी और जानकी जी के साथ विराजते है । लक्ष्मण जी अर्थात वैराग्य सीताजी अर्थात पराभक्ति वैराग्य और चित्रकूट में अर्थात चित्त में अंतर में विराजते है. उनको जीव अर्थात भरत मिलने जाते है. इस मिलन का चिंतन भी पापो कर देता है ।
श्री राम भरत मिलन के वर्णन है रामचन्द्र जी के च्रारविन्दो में शान्ति है. बिछड़ी हुई जीव आत्मा जहाँ भी जाये ,वहा आशांति ही मिलती है । यह जीव जगत का अंश नहीं, श्री राम जी का अंश है. संसार तो सुख और दुःख से भरा हुआ है. संसार सुख देता है और अतिशय दुःख भी देता है. इस जीव को आनंद की भूख है. श्री रामचरण बिना कही आनंद नहीं ।
जय माता दी जी
जय श्री राम
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Sanjay Mehta
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