वह देखो, एक छोटा सा बच्चा। ।घर बार त्यागकर महाकराल मृत्यु के गाल से ब्रह्मविध्या को निकाल रहा है. मृत्यु कहता है --- 'मै तुम्हे अलौकिक अप्सराये देता हु… धन-सम्पति के पर्वत देता हु. अमर जीवन देता हु- अधिक क्या, जो मांगो सब कुछ देता हु. परन्तु ब्रह्मविध्या मत चाहो… हाथ जोड़ता हु, पावों पड़ता हु. . विध्या मत चाहो।। परन्तु देखो, उस बालक का दिल नहीं मानता, वह ठोकर मारता है. धन-सम्पति पर। वह थूकता है विषयविकारों पर! वह धिक्कार करता है अप्सराओं पर और लात मारता है लम्बे जीवन पर… वह अपना बालहठ नहीं छोड़ता कहता है, यही लूँगा, यही लूँगा …। जानते हो वह कौन है ? यह है नचिकेता। । इसको बालक नहीं समझना।।। यह पिता का भी पिता है… आइये श्रद्धा से नमस्कार करिये. यह त्याग का अवतार है
जय माता दी जी
जय नचिकेता महाराज की
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