भागवत में लिखा है कि श्रीकृष्ण जी को कभी क्रोध आता है, पर राधाजी को कभी क्रोध नहीं आया है... द्रौपदी कि पांच संतानों कि जब हत्या हो गई, तब श्रीकृष्ण को क्रोध आ गया और उन्होंने अश्वत्थामा को शाप दे दिया, श्रीराधा जी को कभी क्रोध नहीं आता है, माया किसी को नहीं छोडती है, पर राधाजी का कीर्तन जो करता है, राधाजी के नाम का जो जप करता है, उसे माया त्रस्त नहीं कर सकती है, श्रीराधाजी जीव का ब्रह्म-सम्बन्ध कराती है
जीवन में ऐसा समय आता है, जब मानव कहता है कि "मै सुखी हु" भगवान उसे पूर्ण अनुकूलता देते है. अधिक भक्ति के लिए, अधिक परोपकार के लिए भगवान उसे सुख देते है, परन्तु अनुकूलता के मिलने पर मानव अधिक भक्ति नहीं करता है, मानव अधिक वासना-सुख भोगता है, भगवान की दी हुई अनुकूलता का अवसर मानव गवां देता है और तब भगवान को बुरा लगता है. यह जीव योग्य नहीं है. भगवान उसे सजा देते है, प्रभु को जब क्रोध आता है, तब राधाजी समझाती है - "दया रखिये, जीव दुष्ट है पर आप तो दयालु है.. अब जीव सुधर जायेगा" राधाजी सिफारिश करती है.. परमात्मा की कृपा -शक्ति राधा जी ही है. राधाजी प्रभु से विनय करती है "यह जीव हमारी शरण में आया है, मुझे इस पर दया आती है"
पापी जीव भगवान के समक्ष जाने का साहस नहीं कर सकता पर राधाजी के समक्ष जाता है, व्यवहार में भी ऐसा ही दीख पड़ता है कि कैसा भी लड़का हो, पिता जब क्रोधित होते है तो वह माता के समक्ष हाथ जोड़कर खड़ा रहता है, तब माता सब कुछ-भूल जाती है. लड़के को प्रेम से भोजन कराती है, उसे लड़के का कोई दोष नहीं दिखाई देता है और वह उस के पिता को समझाती है .. साधारण स्त्री में ऍसी शक्ति है तो राधा जी में कितनी शक्ति होगी.
अब बोलिए जय श्री राधे. जय माता दी जी .. जय जय माँ. जय माँ दुर्गे. जय माँ चिंतपूर्णी
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Sanjay Mehta
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