शिव भोले बाबा जी से एक भक्त की प्रार्थना
जय भोले भंडारी की! बाबा विश्वनाथ की जय.. त्रिपुरारि त्रिलोकीनाथ की जय .. सुख के सदन शिवशंकर की जय! हर हर महादेव !!!
भारतवर्ष के एक सिरे से लेकर दुसरे सिरे तक प्रत्येक तीर्थ-स्थान में, प्रत्येक देवालय में, यहाँ तक की प्रत्येक हिन्दू के ह्रदय में आज तुम्हारा ही जय जयकार हो रहा है, सब लोग तुम्हे ही पुकार रहे है, परन्तु फिर भी है मृत्युंजय! ना जाने तुम हम पर क्यों नहीं दयालु होते हो.. माना की हम महान अवगुणों के धाम है; परन्तु है तो आखिर तुम्हारे ही.. बोलो, बोलो, कृपालु शंकर! अपने ही अंश, अपनी ही संतान के लिए यह मौनाव्ल्म्बन कैसे???
यह भी ठीक है कि हम बड़े स्वार्थ, कुटिल और पामर है, परन्तु तुम तो दयामय हो, तुम संसार के पिता हो, हम तुम्हारी संतान है, तुम भगवान हो तो हम तुम्हारे भक्त है, तुम स्वामी हो तो हम तुम्हारे सेवक है... इस दशा में तुम्ही बतलाओ, प्रभु! तुम्हे छोड़कर हम और किसकी शरण ले! और कहाँ हमारा निस्तार हो सकता है? दीननाथ! कैसा आश्चर्य है कि ऐसे परमदयालु, पिता, भगवान और स्वामी को पाकर भी इस प्रकार दीन - हीन है..
भगवान! तुमसे हमारे कष्ट छिपे नहीं है.. क्युकि तुम घट-घट-वासी-सर्वान्तर्यामी हो.. इसलिए प्रार्थना यही है कि अब अधिक ना तडपाओ! बहुत हो चूका, क्लेशो को सहते-सहते ह्रदय जर्जर हो रहा है. कहते है "धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का" स्वामिन! ठीक यही दशा आज हमारी हो रही है.. दुखो से संसार त्राहि-त्राहि कर रहा है. धर्म के नाम पर अधर्म बढ़ाया जा रहा है. इस प्रकार इहलोक और परलोक - कही भी गति नहीं दिखलाई पड़ती. शम्बो! जिन महापुरुषो ने अनेक जन्मोतक घोर तपस्या करके तुमसे अक्षय भक्ति का वरदान पाया है, खेद है, आज उन्हिकी संताने, इस अघोगति को प्राप्त हो रही है. भोलेनाथ! लगाओ इन भूले-भटकों को ठिकाने! ऐसा ना हो कि तुम-जैसे कर्णधार को पाकर भी इनकी डगमगाती हुई जीर्ण-शीर्ण जीवन नौका डूब ही जाये...
परमपिता! प्रार्थना स्वीकार करो, दुष्टों का दलन करो, और भक्तो को ह्रदय से लगा लों. निश्चेय ही तुम ऐसा करोगे, पर अभी नहीं.. जब अपने भक्तो को खूब रुला लोगे, उन्हें और दुःख देकर उनकी प्रेम-परीक्षा ले लोगे तब.. परन्तु भगवान! तुम्हारी परीक्षा में यहाँ तो बीच में ही प्राण निकले जा रहे है, हाय! वह घडी कब आएगी???
आओ, विश्वम्भर! पधारो, अपने भक्तो के कष्ट -निवारणार्थ दौड़ पड़ो, पुन: एक बार अधर्म का नाश करो और धर्म कि स्थापना करो, भक्तो का कल्याण करो, बस , एक मात्र यही श्री चरणों में संजय की प्रार्थना है
हरि ॐ . जय माता दी जी
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Sanjay Mehta
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