रावण ने विभीषण का अपमान किया, विभीषण ने वन्दन किया तब रावण ने उसको लात मारी.. जिस घर में संत का अपमान होता है, उस घर का जल्दी विनाश होता है. रावण की लंका में संत विभीषण विराजता था. विभीषण का पुण्य रावण का रक्षण करता था. प्रत्येक घर में एक -एक पुण्यात्मा , दैवी जीव होता है. उसके पुण्य प्रताप से वह घर सुखी होता है. उसकी बिदायगी होने से सभी दुखी हो जाते है.
भागवत में कथा आती है. दुर्योधन ने विधुरजी का अपमान किया, दुर्योधन ने विदुरजी से कहा - तू दासीपुत्र है, मेरे घर का अन्न खाकर पड्डा जैसा पुष्ट हुआ है और मेरी निंदा करता है. मेरे घर का खाकर मेरे विरुद्ध काम करता है. दुर्योधन ने नौकरों को हुकम दिया की इस विदुर को धक्का मारकर बाहर निकाल दो. विधुर जी ने विचार किया की दुर्योधन के नौकर मुझे धक्का मारेंगे तो उनको पाप लगेगा, मै ही सभा छोड़कर चला जाऊ. विधुर जी के चले जाने से कौरवो का नाश हुआ, रावण की भी बुद्धि बिगड़ गई थी ... उसका विनाश -काल समीप आ गया.
विभीषण ने लंका छोड़ दी, विभीषण जी ने जिस समय लंका में से गये उसी क्षण सभी राक्षस आयु-हीन हो गये. साधू-पुरष का अपमान सर्वनाश करता है. विभीषण जी श्रीराम जी के पास आकाशमार्ग से गये. उस समय सम्पूर्ण रस्ते में वे श्री राम जी के चरणों का स्मरण करते रहे.... तुम घर से मंदिर के दर्शन करने जाओ, उस समय किसी का मकान आदि मत देखो , किसी का मुख देखने की इच्छा मत रखो. घर से मंदिर जाओ तब तक मार्ग में भगवत-स्मरण करते चलो..
अब बोलिए जय माता दी. फिर से बोलिए जय माता दी. जय माँ राज रानी, जय माँ दुर्गे. जय माँ वैष्णो रानी . जय जय माँ
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Sanjay Mehta
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