हनुमानजी को सिन्दूर चढाने कि परंपरा क्यों?
अदभुत रामायण में एक कथा का उल्लेख मिलता है, जिसमे मंगलवार कि सुबह जब हनुमानजी को भूख लगी, तो वे माता जानकी के पास कुछ कलेवा पाने की लिए पहुंचे . सीता माता की मांग में लगा सिन्दूर देखकर हनुमानजी ने उनसे आश्चर्यपूर्वक पूछा - "माता! मांग में आपने यह कौन सा लाल द्रव्य लगया है"?
इस पर सीता माता जी ने प्रस्न्न्तापूर्वक कहा - "पुत्र! यह सुहागिन स्त्रियों का प्रतीक, मंगल सूचक, सौभाग्यवर्द्धक सिन्दूर है. जो स्वामी के दीर्घायु के लिए जीवनपर्यत मांग में लगाया जाता है, इससे वे मुझ पर प्रसन्न रहते है"
हनुमानजी ने यह जानकार विचार किया कि जब अंगुली भर सिन्दूर लगाने से स्वामी कि आयु में वृद्धि होती है, तो फिर क्यों ना सारे शरीर पर इसे लगाकर अपने स्वामी भगवान श्रीराम को अजर-अमर कर दू. उन्होंने जैसा सोचा, वैसा ही कर दिखाया. अपने सारे शरीर पर सिन्दूर पोतकर भगवान श्रीराम कि सभा में पहुंचे... उन्हें इस प्रकार सिन्दूरी रंग में रंगा देखकर सभा में उपस्थित सभी लोग हँसे, यहाँ तक कि भगवान राम भी उन्हें देखकर मुस्कराए और बहुत प्रसन्न हुए. उनके सरल भाव पर मुग्ध होकर उन्हों ने यह घोषणा की कि जो मंगलवार के दिन मेरे अनन्य प्रिय हनुमान को तेल और सिन्दूर चढ़ाएगा , उन्हें मेरी प्रसन्नता प्राप्त होगी और उनकी समस्त मनोकामनाए पूर्ण होगी . इस पर माता जानकी के वचनों में हनुमानजी को और भी अधिक दृढ विश्वास हो गया.
कहा जाता है कि उसी समय से भगवान श्रीराम के प्रति हनुमानजी कि अनुपम स्वामिभक्ति को याद करने के लिए उनके सारे शरीर पर चमेली के तेल में घोलकर सिन्दूर लगाया जाता है. इसे चोला चढ़ाना भी कहते है .
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Sanjay Mehta
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1 टिप्पणी:
मुझे तो पता नही था
जानकारी के लिए
बहुत - बहुत आभार....
:-)
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