गंगा विशेष पवित्र नदी क्यों?
गंगा प्राचीन काल से ही भारतीय जनमानस में अत्यंत पूज्य रही है, इसका धार्मिक महत्त्व जितना है, विश्व में शयद ही किसी नदी का होगा.. यह विश्व कि एकमात्र नदी है, जिसे श्रद्धा से माता कहकर पुकारा जाता है
महाभारत में कहा गया है.. "जैसे अग्नि ईधन को जला देती है, उसी प्रकार सैंकड़ो निषिद्ध कर्म करके भी यदि गंगा स्नान किया जाये , तो उसका जल उन सब पापों को भस्म कर देता है, सत्ययुग में सभी तीर्थ पुण्यदायक होते थे.. त्रेता में पुष्कर और द्वापर में कुरुक्षेत्र तथा कलियुग में गंगा कि सबसे अधिक महिमा बताई गई है. नाम लेने मात्र से गंगा पापी को पवित्र कर देती है. देखने से सौभाग्य तथा स्नान या जल ग्रेहण करने से सात पीढियों तक कुल पवित्र हो जाता है (महाभारत/वनपर्व 85 /89 -90 -93 "
गंगाजल पर किये शोध कार्यो से स्पष्ट है कि यह वर्षो तक रखने पर भी खराब नहीं होता .. स्वास्थवर्धक तत्वों का बाहुल्य होने के कारण गंगा का जल अमृत के तुल्य, सर्व रोगनाशक, पाचक, मीठा, उत्तम, ह्रदय के लिए हितकर, पथ्य, आयु बढ़ाने वाला तथा त्रिदोष नाशक है, इसका जल अधिक संतृप्त माना गया है, इसमें पर्याप्त लवण जैसे कैल्शियम, पोटेशियम, सोडियम आदि पाए जाते है और 45 प्रतिशत क्लोरिन होता है , जो जल में कीटाणुओं को पनपने से रोकता है. इसी कि उपस्थिति के कारण पानी सड़ता नहीं और ना ही इसमें कीटाणु पैदा होते है, इसकी अम्लीयता एवं क्षारीयता लगभग समान होती है, गंगाजल में अत्यधिक शक्तिशाली कीटाणु-निरोधक तत्व क्लोराइड पाया जाता है. डा. कोहिमान के मात में जब किसी व्याक्ति कि जीवनी शक्ति जवाब देने लगे , उस समय यदि उसे गंगाजल पिला दिया जाये, तो आश्चर्यजनक ढंग से उसकी जीवनी शक्ति बढती है और रोगी को ऐसा लगता है कि उसके भीतर किसी सात्विक आनंद का स्त्रोत फुट रहा है शास्त्रों के अनुसार इसी वजह से अंतिम समय में मृत्यु के निकट आये व्यक्ति के मुंह में गंगा जल डाला जाता है .
गंगा स्नान से पुण्य प्राप्ति के लिए श्रद्धा आवश्यक है. इस सम्बन्ध में एक कथा है. एक बार पार्वती जी ने शंकर भगवान से पूछा -"गंगा में स्नान करने वाले प्राणी पापो से छुट जाते है?" इस पर भगवान शंकर बोले -"जो भावनापूर्वक स्नान करता है, उसी को सदगति मिलती है, अधिकाँश लोग तो मेला देखने जाते है" पार्वती जी को इस जवाब से संतोष नहीं मिला. शंकर जी ने फिर कहा - "चलो तुम्हे इसका प्रत्यक्ष दर्शन कराते है" गंगा के निकट शंकर जी कोढ़ी का रूप धारण कर रस्ते में बैठ गये और साथ में पार्वती जी सुंदर स्त्री का रूप धारण कर बैठ गई. मेले के कारण भीड़ थी.. जो भी पुरष कोढ़ी के साथ सुंदर स्त्री को देखता , वह सुंदर स्त्री की और ही आकर्षित होता.. कुछ ने तो उस स्त्री को अपने साथ चलने का भी प्रस्ताव दिया. अंत में एक ऐसा व्यक्ति भी आया, जिसने स्त्री के पातिव्रत्य धर्म की सराहना की और कोढ़ी को गंगा स्नान कराने में मदद दी. शंकर भगवान प्रकट हुए और बोले. 'प्रिय! यही श्रद्धालु सदगति का सच्चा अधिकारी है...."
अब बोलिए जय गंगा मैया. हर हर महादेव. जय शिव भोला भंडारी... जय मेरी माँ कालका... जय मेरी माँ दुर्गे.. जय माँ राजरानी...
जय हो. जय जय माँ
जय गंगा मैया
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Sanjay Mehta
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