सर्वप्रथम गणेश का ही पूजन क्यों?
हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य का आरम्भ करने के पूर्व गणेश जी कि पूजा करना आवश्यक माना गया है. क्यों कि उन्हें विघ्नहर्ता व् रिद्धि - सिद्धि का स्वामी कहा जाता है. इनके स्मरण, ध्यान, जप, आराधना से कामनाओं कि पूर्ति होती है व् विघ्नों का विनाश होता है. वे शीघ्र प्रसन होने वाले बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात प्रणव रूप है, प्रत्येक शुभ कार्य के पूर्व "श्री गणेशाय नम:" का उच्चारण कर उनकी स्तुति में यह मन्त्र बोला जाता है.
वक्र्तुण्ड् महाकाय कोटि सूर्य समप्रभ्:।
निर्विघ्न कुरु मे देव सर्व कायेर्षु सर्वदा ।।
पद्मपुराण के अनुसार :- सृष्टि के आरम्भ में जब यह प्रशन उठा कि प्रथम पूज्य किसे माना जाये, तो समस्त देवतागण ब्रह्माजी के पास पहुंचे . ब्रह्माजी ने कहा जो कोई सम्पूर्ण पृथ्वी कि परिक्रमा सबसे पहले कर लेगा, उसे ही प्रथम पूजा जायेगा. इस पर सभी देवतागण अपने - अपने वाहनों पर सवार होकर परिक्रमा हेतु चल पड़े. चुकी गणेशजी का वाहन चूहा है और उनका शरीर स्थूल, तो ऐसे में वे परिक्रमा कैसे कर पाते? इस समस्या को सुलझाया देवरिषि नारद जी ने , उनके अनुसार गणेश जी ने भूमि पर "राम" नाम लिखकर उनकी सात परिक्रमा कि और ब्रह्माजी के पास सबसे पहले पहुँच गये. तब ब्रह्माजी ने उन्हें प्रथम पुज्य बताया.. क्युकि "राम" नाम साक्षात श्रीराम का स्वरूप है और श्रीराम में ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड निहित है. हालाकि किसी किसी पुराण में उन्हों ने अपने माता -पिता की परिक्रमा की यह बतया है. राम-शिव दोनों ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड है ... ब्रह्माजी ने कहा माता -पिता की परिक्रमा "राम" नाम की परिक्रमा से तीनो लोको की परिक्रमा का पुण्य तुम्हे मिल गया, जो पृथ्वी की परिक्रमा से भी बड़ा है. इसलिए जो मनुष्य किसी कार्य के शुभारंभ से पहले तुम्हारा पूजन करेगा, उसे कोई बाधा नहीं आएगी. बस, तभी से गणेश जी अग्रपूज्य हो गए...
एक बार देवताओं ने गोमती के तट पर यज्ञ प्रारंभ किया तो उसमे अनेक विघन पड़ने लगे. यज्ञ सम्पन्न नहीं हो सका. उदास होकर देवताओ ने ब्रह्मा और विष्णु से इसका कारण पूछा, दयामय चतुरानन ने पता लगाकर बतया की इस यज्ञ में श्री गणेशजी विघन उपस्थित कर रहे है, यदि आप लोग विनायक को प्रसन्न कर ले , तब यज्ञ पूर्ण हो जायेगा. विधाता की सलाह से देवताओं ने स्नान कर श्रद्धा , भक्ति पूर्वक गणेशजी का पूजन किया. विघनराज गणेशजी की कृपा से यज्ञ निर्विघन सम्पन्न हुआ.. उल्लेखनीय है की महादेव जी ने भी त्रिपुर वध के समय पहले गणेशजी का पूजन किया था..
अब बोलिए जय गणेश काटो कलेश. जय माता दी जी
गणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख हैं :-
1. सुमुख, 2. एकदंत, 3. कपिल, 4. गजकर्णक, 5. लंबोदर, 6. विकट, 7. विघ्न-नाश, 8. विनायक, 9. धूम्रकेतु, 10. गणाध्यक्ष, 11. भालचंद्र, 12. गजानन।
उपरोक्त द्वादश नाम नारद पुरान मे पहली बार गणेश के द्वादश नामावलि मे आया है | विद्यारम्भ तथ विवाह के पूजन के प्रथम मे इन नामो से गणपति के अराधना का विधान है |
*पिता - भगवान शिव,
*माता - भगवती पार्वती,
*भाई - श्री कार्तिकेय,
*पत्नी - दो. 1. रिद्धि, 2. सिद्धि, (दक्षिण भारतीय संस्कृति में गणेशजी ब्रह्मचारी रूप में दर्शाये गये हैं)
*पुत्र - दो. 1. शुभ, 2. लाभ,
*प्रिय भोग (मिष्ठान्न) - मोदक, लड्डू,
*प्रिय पुष्प - लाल रंग के,
*प्रिय वस्तु - दुर्वा (दूब), शमी-पत्र,
*अधिपति - जल तत्व के,
*प्रमुख अस्त्र - पाश, अंकुश.
गणेश शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं। उनका वाहन मूषक है। गणों के स्वामी होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है। ज्योतिष में इनको केतु का देवता माना जाता है, और जो भी संसार के साधन हैं, उनके स्वामी श्री गणेशजी हैं। हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं। गणेशजी का नाम हिन्दू शास्त्रो के अनुसार किसी भी कार्य के लिये पहले पूज्य है। ईसलिए इन्हें आदिपूज्य भी कहते है। गणेश कि उपसना करने वाला सम्प्रदाय गाणपतय कहलाते है|
गणपति आदिदेव हैं, जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रवण (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है। चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएँ हैं। वे लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति व छोटी-पैनी आँखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं। उनकी लंबी नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है।
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Sanjay Mehta
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