गोपी बालकृष्णलाल के दर्शन करने के लिए यशोदा माता के घर जाती है, पर जब प्रेम बढ़ने लगा तब जहाँ -तहां उसकी दृष्टि जाती है, वहां - वहां उसे श्री कृष्ण दिख पड़ते है, भगवान में मग्न गोपी देह -ज्ञान को भूल जाती है, तब गोपी को अपने श्री कृष्ण दीख पड़ते है.
"लाली देखन मै गई, मै भी हो गई लाल"
जब तक देह-ज्ञान है, तब तक परमात्मा नहीं दिख पड़ते, देव के दर्शन करने है तो देह - ज्ञान भूलना पड़ेगा.. जिसको याद रहता है कि "मै पति हु, मै पत्नी हु, मै पुरष हु, मै स्त्री हु" वह परमात्मा के दर्शन उपयुक्त रूप से नहीं कर सकता, उसे परमात्मा के दर्शन ठीक से नहीं होते. परमात्मा की भक्ति करते हुए जो देह-भान भूलता है , उसे अपने भीतर विराजमान परमात्मा के दर्शन होते है, आत्मा-स्वरूप में परमात्मा के दर्शन को ही अपरोक्ष दर्शन करते है.
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Sanjay Mehta
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