यों तो भारत में प्रधान-प्रधान इक्यावन शक्तिपीठ माने जाते है किन्तु उनमे सर्वप्रधान चार माने जाते है, जिनमे एक श्री पुर्नागिरिपीठ भी है. यह जिला नैनीताल में है. यात्री पीलीभीत रुहेलखण्ड -कमाऊ से टनकपुर मंडी पहुँचते है और वहाँ से पैदल जाना पड़ता है. पहले तीन साढ़े तीन समतल भूमि पार करने के बाद पहाड़ की चढाई शुरू हो जाती है। प्राय : तीन खोले (जलसंपात )पार करने पर बाँसीकी कठिन चढाई आरम्भ हो जाती है और मंडी से दस -बारह मील टुन्नास में यात्री विश्राम यहाँ पर भैरव का स्थान तथा एक धर्मशाला है. उसके ऊपर एक क बाद एक-दो बावलीयाँ है, ऊपरवाली देवी की बावली में यदि अपवित्र बर्तन कोई डाल दे तो उसका जलस्त्रोत बंद हो जाता है। टुन्नास पर विश्राम करने के बाद दुसरे दिन प्रात:काल स्नान करके यात्री दर्शन के लिए रवाना होते है. लगभग डेढ़ फर्लांग की चढ़ाई के बाद श्री काली जी का स्थान आता है. यहाँ पर किसी भक्त का चढाया हुआ एक तांबे का मंदिर रखा हुआ है. वहां से आगे कुछ उतरने पर प्रधान पीठ की पर्वत श्रेणी मिलती है. इनमे एक पर्वत तो बिलकुल नंगा है, उसपर कही-कही घास मिलती है और कही-कही जरा अड़ने लायक जगह दिखाई पड़ती है. नहीं तो सब जगह एक-सा सपाटा है, ना कोई वृक्ष है ना लता । केवल भगवती के नामजप के भरोसे यात्री इस पर्वत को पहले पार किया करते थे. इधर कुछ ही वर्षो से किसी भक्त और सीढियाँ बनवा दी है और पकड़ने के लिए लोहे की जंजीरेलगवा दी है. इस से यात्रा अब सुगम हो गयी है. इस पहाड़ के समाप्त होने पर एक छोटा सा चबूतरा सा मिलता है नीचा ऊँचा है. यही प्रधान पीठस्थान है, जिसकी पूजा होती है, पीठ के ठीक बगल में एक वृक्ष है जिसमे बहुत से घण्टे लटक रहे है, यह पेड़ ना मालुम कब से यहाँ खड़ा है, इसके डाल सुखकर गिर पड़ी है और इसमें फल, फुल पत्ते कभी नहीं दिखायी पड़ते , फिर भी यह अचल अट्लभाव से माता की सेवा कर रहा है मानो वह कोई देवी का अनन्य भक्त हो धूप , शीत और बरसात का कोई ख्याल ना कर निरंतर अपनी पूजा में निमग्न है, इस स्थान की यात्रा चेत्र नवरात्र में होती है। .
जय माता दी जी
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Sanjay Mehta
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