गुरुवार, 18 जुलाई 2013

तुम बसी हो कण कण अंदर : tum Basi ho Kan Kan Ander Maaa : Sanjay Mehta Ludhiana









तुम बसी हो कण कण अंदर


तुम बसी हो कण कण अंदर माँ, हम ढूढंते रह गये मंदिर में |
हम मूढमति हम अनजाने माँ सार, तुम्हारा क्या जाने || तुम बसी.......
तेरी माया को ना जान सके, तुझको ना कभी पहचान सके |
हम मोह की निंद्रा सोये रहे, माँ इधर उधर ही खोये रहे |
तू सूरज तू ही चंद्रमा, हम ढूढंते रह गये मंदिर में || तुम बसी हो कण कण अंदर
हर जगह तुम्हारे डेरे माँ, कोइ खेल ना जाने तेरे माँ |
इन नैनों को ना पता लगे, किस रुप में तेरी ज्योत जगे |
तू परवत तु ही समंदर माँ, हम ढूढंते रह गये मंदिर में || तुम बसी हो कण कण अंदर
कोइ कहता तुम्ही पवन में हो, और तुम्ही ज्वाला अगन में हो |
कहते है अंबर और जमी, तुम सब कुछ हो हम कुछ भी नहीं
फल फुल तुम्ही तरुवर माँ, हम ढुढंते रह गये मंदिर में || तुम बसी हो कण कण अंदर
तुम बसी हो कण कण अंदर माँ, हम ढुढंते रह गये मंदिर में |
हम मूढमति हम अज्ञानी, माँ सार तुम्हारा क्या जाने ||









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