मंगलवार, 9 जुलाई 2013

जगज्जननी जगदम्बिके!








जगज्जननी जगदम्बिके!


महिषासुरमर्दिनी निर्बल संतान को शक्ति प्रदान कर सामर्थ्यवान बना …श्रद्धा और भक्ति दे जिससे तेरे ऊपर अटल विश्वास और तेरे चरणारविन्द में अखण्ड अनुराग हो. कुपात्र के ऊपर घृणा ना कर माँ । यदि तू ही विमुख हो जाएगी तो अन्यत्र आश्रय ही कहा मिलेगा माँ … दे विध्या जिससे सुपुत्र बन सकूँ ... दुःख दूर कर या दुःख सहन करने की शक्ति दे माँ । क्युकि भूखा प्यास बालक माता का ही स्मरण करता है ... मुझे इस दुःख में देखकर और अज्ञानगर्त में धँसता देखकर भी तू चुप है माँ . क्या तेरी सन्तति का यह करुण क्रन्दन तुझे तिलमिला नहीं देता? क्या मै भूल कर रहा हु माँ? क्या तुझे मै नहीं जानता? क्यों नहीं, खूब अच्छी तरह पहचानता हु माँ । तू मेरी माता है. वेद और शास्त्र भले ही तुझे अनिर्वचनीय , निर्गुण और साकार कहे… भले ही कोई स्थूल और सूक्षम के झगडे में पड़े, पर मै तो तुझे दयामयी माता ही कहूँगा.

मै तेरे स्थूल, सूक्ष्म, सगुण, निर्गुण, साकार और निराकार आदि के झमेले में ना पड़कर तुझे अपार कृपा का सागर कहूँगा माँ । हे दयामयी ! अपने कृपासागर का एक बिंदु मुझे दे दे माँ … बस। उसके मिलते ही तेरे चरणारविन्दमकरन्द का मधुकर बनकर नि:शंकभाव से यही भनभनाता रहूँगा … माँ ....

जय माता दी जी
माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■
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Sanjay Mehta










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