शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

हे महाकाली , खप्पर वाली : He Mahakali Khhper Wali.. : Sanjay Mehta Ludhiana














हे महाकाली , खप्पर वाली
तुझ को कोटि प्रणाम, धन्य हो गये. .भगत जिन्होंने लीया तुम्हारा नाम

एक समय जब छिड़ा भयानक,
देवा-सुर -संग्राम
तब देवो ने तुझे पुकारा,
गूंजा तेरा नाम
अम्बिके गूंजा तेरा नाम...

हे अम्बिके.. , जगदम्बिके ,हे खप्पर वाली...
प्रगट हुई जगदम्बिके चंडी का अवतार...

चामुंडा के रूप मे करने लगी प्रहार
विक्रल्काल के धधक गई..
दानव असुरो के अंगो पर
लेकर खड्ग हाथ चौ - तरफ बड़ी..
माँ मुण्ड गिरा दी मुंडो पर


त्राहि - त्राहि मच गई...
और असुरो का मंडल छलकाया
तब एक महा दानव,
रक्त बीज बनके आया

उसका जब माँ ने सिर काटा
क्क्शोनित(रक्त) के जितने बिंदु गिरे
उतने ही प्रकटे रक्त बीज
उतने ही दानव और गिरे..

यह देख समस्या चंडी ने..
काली माँ का आह्वान किया..
उस रक्तबीज की मृत्यु का
आखिर बस यही निधान किया..

हे अम्बिके, जगदम्बिके.. हे खप्पर वाली
हे माता महाकाली... हे माता महाकाली

मुंडो की माला गले पहन
वर्द्ध हाथो का श्रृंगार कियो
कर मे त्रिशूल क्रपान लिए
काली ने शूल प्रहार किये
इस रक्तबीज के मस्तक के
क्ष्होनित का लप - लप पान किया
तब लाल लहू को चाट गई
नहीं एक बिंदु भी गिरने दिया..


जब रक्तबीज की लाश गिरी
असुरो मे भगदड़ मची घोर
काली माता के विकराली रूप
त्राहि त्राहि का मचा शोर ..

धरती डोली अम्बर कांपा
कैलाश हिला थर थर के
टूटी समाधि शिव शंकर की
लहराई त्रिशूल नयन भड़के..
आ गये शंकर समझाने को
पे भंग तरंग नयन मीटे
ठोकर कहा कर आ गिरे स्वयम
भोले काली के पग नीचे

काली की जैसे दृष्टि पड़ी
लम्बी जिह्वा निकल पड़ी..
पग नीचे शंकर देख
देख वो हिल ना सकी रह गई खड़ी
हे अम्बिके , जगदम्बिके, हे खप्पर वाली,
हे माता महाकाली..
हे माता महाकाली..

कोई कहे तुझे चामुंडा..
कोई कहे तुझे काली ..
कोई कहे तुझ को जगदम्बा..
अम्बा शक्तिशाली..
इस अनंत मे दिग्द्वंत मे..
तेरा ही यश गाया..
सभी देविओ का है देवी
तुझ मे रूप समाया..
हे अम्बिके , जगदम्बिके, हे खप्पर वाली,
हे माता महाकाली..
हे माता महाकाली..


संजय मेहता
लुधिआना
जय माता दी जी








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