केवट की कथा
श्री राम जी की सरलता के अनेको प्रसंग है . रामायण में केवट का अति सुंदर प्रसंग वर्णित है. बनवास लेकर श्री रघुनाथ जी प्रयागराज में पधारे है. उस समय गंगा जी पार करने के लिए उनको नौका की जरूरत पड़ती है. तुम प्रयागराज गए होंगे. प्रयागराज में आज भी कितने ही नाविक लोग ऐसा कहते है के हम तो उसी केवट के वंश के है. जिसने रामजी को नाव में बैठाकर गंगापार उतारा था. केवट के वंश में हमारा जन्म हुआ है
केवट श्री राम, लक्ष्मण और जानकी जी को नाव में बैठाकर गंगा जी के सामने के किनारे पर ले गया. केवट ने इनको गंगापार उतारा है. गंगा - किनारे रेती में श्री सीतारामजी विराजे है . रामजी को आज संकोच हुआ है . उन्हों ने ऐसा सोचा के इस केवट को मै क्या दू? इसने मेरी सेवा की है . इसने हमको गंगापार उतारा है. श्री राम जी बहुत संकोची है . किसी के उपकार को किसी की थोड़ी भी सेवा को रामजी भूलते नहीं. आज तो श्री राम तपस्वी बनकर वन में पधारे है. वल्कल धारण किया है. पास में कुछ भी तो नहीं. केवट को खाली हाथ विदाई देने में रामजी को बहुत संकोच हुआ. केवट विदा लेने आया. उसने श्री सीताराम जी को साष्टांग प्रणाम किया प्रभु की आँखे सजल हो गई. वे विचार करने लगे 'यह गरीब सेवा करता है. इसकी कोई मजूरी दी नहीं उस पर भी साष्टांग वन्दन करता है. इसको खाली हाथ किस प्रकार विदा करू? मुझे इसे कुछ तो देना ही चाहिए , परन्तु ...... श्री राम जी केवट के सामने देख सकते नहीं नजर धरती में लगी है
श्री सीता जी समझ गई की प्रभु इसको कुछ देने की इच्छा है परन्तु पास में कुछ भी नहीं है. इससे संकोच हो रहा है. माता जी की ऊँगली में एक सुंदर अंगूठी थी. सीता जी ने यह अंगूठी उंगली से उतारकर रामजी के हाथ में देते हुए कहा 'आप तनिक भी संकोच नहीं करे' इसको इसे दे दीजिये. रामजी ने अंगूठी केवट को देने का प्रयास किया. केवट ने हाथ जोड़कर अंगूठी लेने को मना किया , रामजी से बोला. "महाराज मै कोई पढ़ा - लिखा नहीं हु, अनपढ़ हु परन्तु मेरे पिता ने खास करके कहा है की 'कोई गरीब आवे, साधू आवे, ब्राह्मण आवे तपस्वी आवे, इनसे कुछ भी लिए बिना गंगापार उतरना' यही नियम मैंने सदैव पालन किया है. आप मेरी नाव में बैठे मुझे आपकी सेवा का लाभ मिला, उससे आज मै कृतार्थ हुआ हु. मुझे कुछ भी लेना नहीं है. आज आप राजाधिराज होकर पधारे नहीं है. तपस्वी होकर पधारे तपस्वी के पास मै कुछ लेता नहीं , जैसे आज मैंने आप को गंगा पार कराई, आप भी मुझे भवसागर पार करवाना.
प्रभु जी ने कहा 'भाई मै तुझे मजूरी नहीं देता, प्रेम से अपना प्रसाद देता हु प्रसाद तो अवश्य लेना चाहिए, प्रसाद लेने में तुम मना करते हो यह ठीक नहीं. इसको प्रसाद मानकर ही तुमको लेना है ..
केवट ने हाथ जोड़कर कहा, महाराज! आपकी प्रसाद देने की इच्छा हो तो समय आवे तब दीजियेगा, मै मना नहीं करूँगा. मेरे मालिक आज वन में पधारे है, इसलिए आज मुझे प्रसाद भी लेना नहीं, मेरी ऐसी भावना है की आप चौदह वर्ष का वनवास सुख-रूप परिपूर्ण को और सीता जी के साथ आप अयोध्या के सिंहासन पर विराजे. आपका राज्याभिषेक हो, उस समय इस गरीब को जो कुछ भी आप देंगे , मै तुरंत ही सिर चढ़ाकर लूँगा.
सो प्रसादु मै सिर धरि लेवा
परन्तु आज तो मै प्रसाद भी नहीं लूँगा..
माताजी की आँखे सजल हुई, उनका हृदय द्रवित हो गया, कैसा इसका ह्रदय है? कैसी इसकी भावना है, की श्री सीताराम जी सुवर्ण-सिंहासन पर विराजे और मै दर्शन करू
रामायण में लिखा है की चौदह वर्ष का वनवास पूरा होने के पश्चात् श्री सीताराम जी पुष्पक विमान में बैठकर वापिस अयोध्या पधारे. अयोध्या में जिस दिन पधारे वह मिति वैशाख सुदी पंचमी थी. लोगो ने बहुत आग्रह किया की वैशाख सुदी सप्तमी के दिन ही राज्याभिषेक कर दिया जाए, इसलिए श्री राम जी आये और तुरंत ही दो दिनों में उनका राज्याभिषेक हो गया. इतने थोड़े से समय के कारन राज्याभिषेक - प्रसंग से पहले केवट आ नहीं पाया. राज्याभिषेक का भारी दरबार भरा हुआ है. अनेक राजा लोग आये हुए है, अनेक सेवक और भारी प्रजाजन भी वहा है, अत्यंत भीड़ हो रही है. श्री सीतारामजी सुंदर सिंहासन के उपर विराजे हुए है, सब लोग श्री राम जी का दर्शन कर रहे है. परन्तु राम जी की आँखे किसी को ढूंढ रही है. श्री राम जी चारो तरफ देख रहे है. सीता जी ने पूछा आप किसको देख रहे है? श्री राम जी ने कहा 'यह सब मेरे दर्शन करने आये है, परन्तु जिसके दर्शन की मेरी इच्छा है वह दीखता नहीं '
सीता जी ने पूछा 'ऐसा कौन है जिसके दर्शन की आपको इच्छा है
प्रभु ने कहा 'अपने मित्र केवट को देखने की मेरी इच्छा है. उसने कहा था की राज्याभिषेक होगा तब मै प्रसाद लूँगा
केवट मीत कहे सुख मानत
केवट को मित्र कहने में रामजी को सुख होता है. आज रामजी को केवट याद आ रहा है. राज्याभिषेक के अतिशय सुखमय वातावरण में भी रामजी केवट को भूले नहीं. जीवन का स्वभाव है की अतिशय सुख में सब कुछ भूल जाता है. श्री राम अतिशय सुख में भी सावधान है
श्री रामचंदर जी ने जगत को ज्ञान दिया की दुःख में किसी को यदि थोडा पानी भी दिया हो तो उसको कभी भूलना नहीं , किसी ने थोड़ी भी सेवा की है तो रामजी भूलते नहीं. अपकार को भूल जाते है , प्रभु अतिशय सरल है. जीव बारम्बार पाप करता है परन्तु परमात्मा उसको भूल जाते है. किसी का उपकार भूलना नहीं और किसी का अपकार याद रखना नहीं . तुम साधू-संत ना बन सको तो कोई बाधा नहीं परन्तु ह्रदय सरल रखना
राज्याभिषेक होने के उपरांत प्रभु ने एक - एक का सम्मान किया , केवट वहा नहीं था, इसलिए प्रभु ने गुह राजा को आज्ञा दी 'तुम्हारे गाव के केवट के लिए यह प्रसाद तुम ले जाना' प्रभु ने केवट के लिए प्रसाद भेजा , स्वर्ण -वस्त्र और आभुष्ण भी भेजे, श्री राम जी के समान कोई हुआ नहीं.
बोलिए जय श्री राम
पवन पुत्र हनुमान की जय
जय माता दी जी
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