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शनिवार, 29 नवंबर 2014
हनुमानजी भीमसेनजी : Sanjay mehta Ludhiana
एक बार हनुमानजी गन्धमादन के एक भाग में अपनी पूँछ फैलाकर स्वच्छन्द पड़े थे। उसी समय बलगर्वित भीमसेन को आते देख वे मन में हँसते हुए उनसे बोलते - 'अनघ ! बुढ़ापे के कारण मै स्वयं उठने में असमर्थ हूँ , कृपया आप ही मेरी इस पूँछ को हटाकर आगे बढ़ जाइए ' भीमसेन अवज्ञा के साथ हँसते हुए बायें हाथ से उन महाकपि की पूँछ हटाने लगे , पर वह टस-से-मस न हुई. तब वे अपने दोनों हाथो से जोर लगाने लगे, फिर भी इंदरधनुष के समान उठी हुई वह पूँछ उनके द्वारा टस-से-मस न हुई। इस अनपेक्षित पराभव के कारण भीमसेन ने उन्हें पहचानकर लज्जावंत-मुख हो उन कपिशार्दूल से क्षमा मांगी
अब कहिये जय श्री हनुमान जय श्री राम जय माता दी जी
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