शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

Jai maa Naina Devi By Sanjay Mehta Ludhiana










"हे शिवे, अधखिले नीलकमल के समान कन्तिवाले अपने विशाल नेत्रों से तुम्हारे सुरमुनिदुर्लभ चरणों से बहुत दूर पड़े हुए मुझ दीनपर भी अपनी कृपापियूष की वर्षा करो माँ। तुम्हारे ऐसा करने से मै तो कृतार्थ हो जाऊंगा और तुम्हारा कुछ बिगड़ेगा भी नहीं माँ।।। क्युकी तुम्हारी कृपा का भंडार अटूट है, मुझ पर कुछ छींटे डाल देने से उसका दिवाला नहीं निकलेगा . फिर तुम इतनी कंजूसी किसलिए करती हो माँ, क्यों नहीं मुझे एक बार ही सदा के लिए निहाल कर देती। चंद्रमा अपनी शीतल किरणों से सभी जगह समानरूप से अमृतवर्षा करता है। उसकी दृष्टि में एक वीरान जंगल और किसी राजाधिराज की गगान्चुम्बिनी अट्टालिका में कोई अंतर नहीं है। फिर तुम्ही मुझ दीनपर क्यों नहीं ढरती , मुझसे इतना अलगाव क्यों कर रखा है माँ? क्या इस प्रकार वैभव तुम्हे शोभा देता है? नहीं, नहीं, कदापि नहीं माँ, अब कृपया शीघ्र इस दीन को अपनाकर अपने शीतल चरणतल में आश्रय दो माँ, जिससे यह सदा के लिए तुम्हारा क्रीतदास बन जाये , तुम्हे छोड़कर दूसरी और कभी भूलकर भी ना ताके

---------------------जय माता दी जी -------------------------

www.facebook.com/groups/jaimatadig
www.facebook.com/jaimatadigldh
jaimatadig.blogspot.in
ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
♥♥ (¯*•๑۩۞۩:♥♥ ......Jai Mata Di G .... ♥♥ :۩۞۩๑•*¯)♥♥
ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
Sanjay Mehta








कोई टिप्पणी नहीं: