मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

सालासर By Sanjay mehta Ludhiana







सालासर : श्री रामपायक हनुमान जी का यह मंदिर राजस्थान के चुरू जिले में है. गाव का नाम सालासर है, इसलिए "सालासर वाले बाला जी" के नाम से इनकी लोक - प्रसिद्धि है.. बालाजी कि यह प्रतिमा बड़ी प्रभावशाली और दाड़ी-मूंछ से सुशोभित है.. मंदिर पर्याप्त बड़ा है.. चारो और यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाए भी बनी हुई है. जिनमे हजारो यात्री एक साथ ठहर सकते है. दूर-दूर से भी यात्री अपनी मन:कामनाये लेकर यहाँ आते है.. और इच्छित फल पाते है.. यहाँ सेवा-पूजा तथा आय-व्यय-सम्बन्धी सभी अधिकार स्थानीय दायमा ब्राह्मणों को ही है, जो श्री मोहनदास जी के भांजे उदयराम जी के वंशज है


यह बालाजी का मंदिर जयपुर बीकानेर सडक मार्ग पर स्थित है। जयपुर से सालासर लगभग 2 घंटे का सफर है। यह हनुमानजी की मंदिर सालासर धाम से जाना जाता है। यह बालाजी धाम, हनुमान भक्तों के बीच शक्ति स्थल के रूप में जाना जाता है। सालासर हनुमानजी के इस मंदिर में भक्तों की अगाध आस्था है।

यहां हर दिन हजारों की संख्या में देशी-विदेशी भक्त मत्था टेकने के लिए कतारबद्ध खडे दिखाई देंगे। सालासर बालाजी धाम में हनुमानजी की वयस्क मूर्ति स्थापित है, इसलिए भक्तगण इसे बडे हनुमान जी पुकारते हैं।

इतिहास
एक कथा के अनुसार, राजस्थान के नागौर जिले के एक छोटे से गांव असोतामें संवत 1811में शनिवार के दिन एक किसान का हल खेत की जुताई करते समय रुक गया। दरअसल, हल किसी शिला से टकरा गया था। वह तिथि श्रावण शुक्ल नवमी थी। किसान ने उस स्थान की खुदाई की, तो मिट्टी और बालू से ढंकी हनुमान जी की प्रतिमा निकली। किसान और उसकी पत्नी ने इसे साफ किया और घटना की जानकारी गांव के लोगों को दी।
माना जाता है कि उस रात असोता के जमींदार ने रात में स्वप्न देखा कि हनुमानजी कह रहे हैं कि मुझे असोतासे ले जाकर सालासारमें स्थापित कर दो। ठीक उसी रात सालासर के एक हनुमान भक्त मोहनदासको भी हनुमान जी ने स्वप्न दिया कि मैं असोतामें हूं, मुझे सालासर लाकर स्थापित करो। अगली सुबह मोहनदासने अपना सपना असोताके जमींदार को बताया। यह सुनकर जमींदार को आश्चर्य हुआ और उसने बालाजी [हनुमान जी] का आदेश मानकर प्रतिमा को सालासर में स्थापित करा दिया।
धीरे-धीरे यह छोटा सा कस्बा सालासर बालाजी धाम के नाम से विख्यात हो गया। मंदिर परिसर में हनुमान भक्त मोहनदास और कानी दादी की समाधि है। यहां मोहनदासजी के जलाए गए अग्नि कुंड की धूनी आज भी जल रही है। भक्त इस अग्नि कुंड की विभूति अपने साथ ले जाते हैं। मान्यता है कि विभूति सारे कष्टों को हर लेती है।
पिछले बीस वर्षो से यहां पवित्र रामायण का अखंड कीर्तन हो रहा है, जिसमें यहां आने वाला हर भक्त शामिल होता है और बालाजीके प्रति अपनी आस्था प्रकट करता है।
सालासर बालाजी मेला
चैत्र पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा के दिन प्रतिवर्ष सालासर बालाजी धाम में बहुत बडा मेला लगता है, जिसमें बालाजी का हर भक्त शामिल होता है ।
अब बोलिए जय सालासर वाले बाला जी की. जय माता दी जी. जय जय माँ.
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Sanjay Mehta









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