सवा सौ वर्ष हुए जगन्नाथपुरी के पास एक जमींदार थे लोग उन्हें 'कर्ताजी ' कहकर पुकारा करते थे। उन्होंने एक पंडित जी से वैष्णव धर्म की दीक्षा ली। पंडितजी उपर से तो वैष्णव बने हुए थे। परन्तु वास्तव में श्यामा (काली) के उपासक थे .. वस्तुत: उनकी दृष्टि में श्याम और श्यामा में कोई भेद नहीं था
इधर कुछ लोगों ने कर्ता जी उनकी शिकायत करनी आरम्भ कर दी। परन्तु कर्ताजी अपने गुरूजी से इस विषय में कोई प्रश्न करने का साहस नहीं हुआ उस देश के लोग अपने गुरु का बहुत अधिक गौरव मानते है पंडित जी रात्रि के समय काली माँ की उपासना किया करते थे।
अत: कुछ लोगों ने कर्ताजी को निश्चेय कराने के लिए उन्हें रात्री को - जिस समय पंडित जी पूजा मे बैठते थे। ले जाने का आयोजन किया। एक दिन जिस समय पंडित जी माता जी की पूजा कर रहे थे वे अकस्मात कर्ताजी को लेकर आ धमके कर्ताजी को आया देख पंडित जी कुछ सहमे और उन्होंने जगदम्बा से प्रार्थना की कि "माँ! यदि तेरे चरणों में मेरा अनन्य प्रेम है तो तू श्यामा से श्याम हो जा"
पंडित जी की प्रार्थना से वह मूर्ति कर्ता जे के सहित अन्य सब दर्शको को श्री कृष्ण रूप ही दिखलायी दी। इस प्रकार अपने भक्त की प्रार्थना स्वीकार कर भगवती ने भगवान् के साथ अपना अभेद सिद्ध कर दिया
बोलिया जय माता दी
जय श्यामा काली माँ की
बोलिए श्याम बांसुरी वाले की जय
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Sanjay Mehta
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