"हे शर्णार्थियो को शरण देनेवाली, तुम्हे छोड़कर जितने दुसरे देवता है वे अपने हाथो से ही अभय और वरदान का काम लेते है, इसी से तो उन्होंने अपने हाथो में अभय और वरद मुद्रा धारण कर रखी है। तुम्ही एक ऐसी हो जो इन दोनों ही मुद्राओ के धारण करने का स्वांग नहीं रचती, रचने भी क्यों लगी तुम्हे इसकी आवश्यकता ही क्या है? तुम्हारे दोनों चरण ही आश्रितों को सब प्रकार के भयों से मुक्त करने तथा उन्हें इच्छित फल से अधिक देने में समर्थ है, तुम्हारे हाथ सदा शत्रुसंहार के काम में ही लगे रहते है, भक्तो के लिए तो तुम्हारे चरण ही पर्याप्त है माँ
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Sanjay Mehta
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