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रविवार, 18 नवंबर 2012
जय श्री राधे - लुका-छिपी का खेल : Sanjay Mehta Ludhiana
अरी सखी ! तू जानती है यह कौन जा रहा है? प्रलयकाल में सभी को पेट में रखकर शेषशय्या में शयन करने वाले आदि नारायण परमात्मा यही है।। प्रलयकाल में जीव माया के अंधकार में छिपा हुआ रहता है, सृष्टि के प्रारम्भ में भगवान एक - एक जीव को खोज कर बाहर निकलते है और प्रत्येक के कर्म के अनुसार प्रत्येक को जन्म देते है, पर फिर प्रभु जगत में छिप जाते है। भगवान जीव से कहते है -- एक बार जब तुम छिप गए , तब मैंने तुम्हे ढूंढ कर बाहर निकाला । अब मै छिप जाता हु, तुम मुझे दूंढ लो। संसार की रचना करके परमात्मा जगत में छिप गए है, परमात्मा को ढूंढने का प्रयत्न करिये। लाला को लुका-छिपी का खेल बहुत पसंद है। श्री बालकृष्णलाल गोकुल में लुका-छिपी का खेल, खेल रहे है, बच्चे जब छिप जाते है, तब कन्हैया उन्हें खोजने जाते है और जब कभी कन्हैया छिप जाते है तब बच्चे उसे खोजने जाते है, यह जीव और इश्वर का खेल है ..
बोलिए जय श्री कृष्णा
जय माता दी जी
जय श्री राधे
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Sanjay Mehta
1 टिप्पणी:
Rajesh Kumari
ने कहा…
आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा जय माता दी
19 नवंबर 2012 को 9:09 pm बजे
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1 टिप्पणी:
आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा जय माता दी
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