काली की महिमा
देवी वरदान देने में बहुत चतुर है, इस लिए उन्हें दक्षिणा कहा जाता है
जिस प्रकार कार्य की समाप्ति पर दक्षिणा फल देने वाली होती है उसी प्रकार देवी भी सभी फलो की सिद्धि को देती है
दक्षिणामूर्ति भैरव ने उनकी सर्वप्रथम पूजा की इस कारण भी भगवती का नाम दक्षिणाकाली है
पुरष को दक्षिण और शक्ति को 'वामा' कहा जाता है, वही वामा दक्षिण पर विजय पाकर महामोक्ष देने वाली बनी
भगवती काली अनादिरूपा आद्या विद्या है. वे ब्रह्मसवरूपिनी एवं कैव्ल्यादात्री है
पांचो तत्वों तक शक्ति तारा की स्थिति है और सबके अंत में काली ही स्थित है. अर्थात जब महाप्रलय में आकाश का भी लय हो जाता है. तब यही भगवती काली चिक्त्शक्ति के रूप मे विद्यमान रहती है
इन्ही भगवती के वेद में भद्रकाली के रूप मे स्तुति की गई है
ये अजन्मा और निराकार स्वरूप है. भावुक आराधक अपनी भावनाओं तथा देवी के गुण कर्मो के अनुरूप उनके काल्पनिक साकार रूप की स्तुति करते है. अपने ऐसे भक्तो को भगवती काली मुक्ति प्रदान करती है
भगवती काली अपने उपासको पर स्नेह रखने वाली तथा उनका कल्याण करने वाली है
इस प्रकार भगवती की दक्षिणाकाली के नाम से अनेकानेक उपलब्धिया है. जिस भक्त को जो भी उपलब्धि हो, या जो भी सिद्धि चाहे उसे उसी रूप मे महाकाली को स्वीकार करना चाहिए
बोलिए जय माँ कालिके
जय भद्रकाली माँ
जय मेरी माँ वैष्णो रानी की जय
जय मेरी माँ राज रानी की जय
जय जय जय जय जय जय
जय माता दी जी
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