श्री काली का स्वरूप
काली देवी का वर्णश्याम है. जिसमे सभी रंग सन्निहित है. भक्तो के विकार - शुन्य ह्रदय रुपी श्मशान में उनका निवास है. भगवती चित्त्शक्ति में समाहित प्राण शक्तिरुपी शव के आसन पर स्थित है. उनके लाल पर अमृत तत्व बोधक चन्द्रमाँ है और वे त्रगुनातीत निर्विकार केशिनी है. सूर्य चन्द्र और अग्नि ये तीनो उनके नेत्र है जिनसे वे तीनो कालो को देखती है. वे सतोगुण रुपी उज्ज्वल दांतों से रजोगुण - तमोगुण रुपी जीभ को दबाये हुए है. सारे संसार का पालन करने में सक्षम होने के कारन वे उन्नत पीनपयोधर है. वे पचास मात्रका अक्षरों की माला धारण करती है तथा मायारूपी आवरण से मुक्त है तथा सभी जीव मोक्ष न होने तक उनके आश्रित रहते है
वे निष्काम भक्तो के मायारूपी पाश को ज्ञान रुपी तलवार से काट देती है , वे काल रुपी शक्ति को वास्तविक शक्ति देने वाली विराट भगवती है.
इसके अतरिक्त रक्तबीज मर्दिनी श्री काली का स्वरूप वर्णन इस प्रकार है
सम्पूर्ण विकराल देह चमकते हुए काले रंग की है. उनकी बड़ी बड़ी डरावनी आँखे और मुख से जीभ को बहार निकले हुए है. जो गहरे लाल रंग की है . वह नरमुंडो की माला तथा कटे हुए हाथो का आसन धारण किये हुए है. उनके एक हाथ मे खड्ग , दुरसे में त्रिशूल, तीसरे मे खप्पर तथा चौथे हाथ से भक्तो को आशीर्वाद प्रदान करती है
बोलिए जय महाकाली की जय
जय मेरी माँ वैष्णो रानी की जय
जय मेरी माँ राज रानी की जय
जय जय जय
जय माता दी जी
|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें