दुर्गा स्तुति दूसरा अध्याय (चमन जी ) : durga stuti second chapter (chaman ji ) : sanjay mehta ludhiana
दुर्गा पाठ का दूसरा शुरू करू अध्याय
जिसके सुनाने पढने से सब संकट मिट जाये
मेधा ऋषि बोले तभी, सुन राजन धर ध्यान
भगवती देवी की कथा करे सब का कल्याण
देव असुर भयो युद्ध अपर, महिषासुर दैतन सरदारा
योद्धा बली इन्दर से भिरयो , लड़यो वर्ष शतरनते न फिरयो
देव सेना तब भागी भाई, महिषासुर इन्द्रासन पाई
देव ब्रह्मा सब करे पुकारा, असुर राज लियो छीन हमारा
ब्रह्मा देवन संग पधारे, आये विष्णु शंकर द्वारे
कही कथा भर नैनन नीरा, प्रभु देत असुर बहु पीरा
सुन शंकर विष्णु अकुलाये, भवे तनी मन क्रोध बढ़ाये
नैन भये त्रयदेव के लाला, मुख ते निकल्यो तेज विशाला
दोहा: तब त्रयदेव के अंगो से निकला तेज अपार
जिनकी ज्वाला से हुआ उज्ज्वल सब संसार
सभी तेज इक जा मिल जाई , अतुल तेज बल परयो लखाई
ताहि तेज सो प्रगटी नारी , देख देव सब भयो सुखारी
शिव के तेज ने मुख उपजायो, धर्म तेज ने केश बनायो.
विष्णु तेज से बनी भुजाये, कुच मे चंदा तेज समाये
नासिका तेज कुबेर बनाई, अग्नि तेज त्रयनेत्र समाई
ब्रह्मा तेज प्रकाश फैलाये , रवि तेज ने हाथ बनाये
तेज प्रजापति दांत उपजाए, श्रवण तेज वायु से पाए
सब देवन जब तेज मिलाया, शिवा ने दुर्गा नाम धराया
दोहा : अट्टहास कर गर्जी जब दुर्गा आध भवानी
सब देवन ने शक्ति यह माता करके मानी
शुम्भु ने त्रिशूल, चक्र विष्णु ने दीना
अग्नि से शक्ति और शंख वर्ण से लीना
धनुष बाण , तर्कश, वायु ने भेंट चढाया
सागर ने रत्नों का माँ को हार पहनाया
सूर्य ने सब रोम किये रोशन माता के
बज्र दिया इन्दर ने हाथ मे जगदाता के
एरावत की घंटी इन्दर ने दे डारी
सिंह हिमालय ने दीना करने को सवारी
काल ने अपना खड्ग दिया फिर सीस निवाई
ब्रह्मा जी ने दिया कमण्डल भेंट चढाई
विश्वकर्मा ने अदभूत एक परसा दे दीना
शेषनाग ने छत्र माता को भेंटा कीना
वस्त्र आभुष्ण नाना भांति देवन पहराये
रत्न जटित मैया के सिर पर मुकुट सुहाए
दोहा : आदि भवानी ने सुनी देवन विनय पुकार
असुरो के संघार को हुई सिंह असवार
रण चंडी ज्वाला बनी हाथ लिए हथियार
सब देवो ने मिल तभी कीनी जय जय कार
चली सिंह चढ़ दुर्गा भवानी, देव सैन को साथ लियो
सब हथियार सजाये रण के अति भयानक रूप किये
महिषासुर राक्षस ने जब यह समाचार उनका पाया
लेकर असुरो की सेना जल्दी रण-भूमि मे आया
दोनों दल जब हुए सामने रण-भूमि मे लड़ने लगे
क्रोधित हो रण चंडी चली लाशो पर लाशे पड़ने लगे
भगवती का यह रूप देख असुरो के दिल थे कांप रहे
लड़ने से घबराते थे, कुछ भाग गए कुछ हांप रहे
असुर के साथ करोड़ो हाथी घोड़े सेना मे आये
देख के दल महिषासुर का व्याकुल हो देवता घबराए
रण चंडी ने दशो दिशायो मे वोह हाथ फैलाये थे
युद्ध भूमि मे लाखो दैत्यों के सिर काट गिराए थे
देवी सेना भाग उठी रह गई अकेली दुर्गा ही
महिषासुर सेना के सहित ललकारता आगे बड़ा तभी
उस दुर्गा अष्टभुजी माँ ने रण भूमि मे लम्बे सांस लिए
श्वास श्वास मे अम्बा जी ने लाखो ही गण प्रगट किये
बलशाली गण बढ़े वो आगे सजे सभी हथियारों से
गूंज उठा आकाश तभी माता के जै जै कारो से
प्रथ्वी पर असुरो के लहू की लाल नदी वह बहती थी
बच नहीं सकता दैत्य कोई ललकार के देवी कहती थी
लकड़ी के ढेरो को अग्नि जैसे भस्म बनाती है
वैसे ही शक्ति की शक्ति दैत्यों को मिटती जाती है
सिंह चढ़ी दुर्गा ने पल मे दैत्यों का संहार किया
पुष्प देवो ने बरसाए माता का जै जै कार किया
'चमन' जो श्रद्धा प्रेम से दुर्गा पाठ को पढता जायेगा
दुखो से वह रहेगा बचा मन वांछित फल पायेगा
दोहा : हुआ समाप्त दूसरा दुर्गा पाठ अध्याय
'चमन' भवानी की दया, सुख सम्पति घर आये
जय माता दी जी
जय माँ वैष्णो रानी की जय
जय माँ राज रानी की जय
संजय मेहता लुधियाना
|
7 टिप्पणियां:
Jai mata Di
Sunder
Jai mata di 🙏🙏
Jai mata di
Jai mata di
Jai mata di
Jai Mata di🙏🙏
एक टिप्पणी भेजें