माया का एक सिंह बनाया डाल के उसमे प्राण चले
लेने परीक्षा मोरध्वज की अर्जुन और भगवान चले
तीनो पहुँच गए राजधानी, द्वारे अलख जगाते है
तीन रोज के भूखे, पहरेदारो को बतलाते है
सुनकर के ये बात साधू की, कहने को दरबान चले.
लेने परीक्षा....
जय होवे महाराज जी, दो साधू द्वारे आये है
तीन रोज से भूखे है , और साथ मे सिंह भी लाये है
इतनी सुनकर के राजा जी, थाली सजवा पकवान चले
लेने परीक्षा....
भोजन खिलवाना हो तो पहले, सिंह को भोजन दो राजा
नर भक्षी है सिंह हमारा , नर का मांस ही दो राजा
गैर का सुत न कटने पाए, अपने पर कृपाण चले
लेने परीक्षा....
अपने सुत को मारने से पहले, एक बात सुन महादानी
एक तरफ पकड़ो तुम आरा, एक तरफ पकड़ो रानी
आँखों से ना आंसू निकले, आरा शीश दरम्यान चले
लेने परीक्षा....
जो आज्ञा कहकर राजा ने, सुत पर आरा फेर दिया
अपने लाल के टुकड़े करके, सिंह के आगे गेर दिया
जाहिर कुछ्ना होने दिया, चाहे दिले मे अनेक तूफ़ान चले
लेने परीक्षा....
अब हम खायेंगे भोजन राजा, पांच थाल तुम सजवा लो
देकर के आवाज तीन तुम, अपने सुत को बुलवा लो
सुन कर के ये बात साधू की, राजा हो हैरान चले
लेने परीक्षा....
नाम रहेगा जग मे रोशन, जब तक चाँद सितारे है
हम सेवक है श्री बाबा के, वो गुरुदेव हमारे है
देकर के वरदान राजा को, तीनो अपने धाम चले.
लेने परीक्षा....
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1 टिप्पणी:
वृंदावन बिहारी लाल की जय
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