नैना देवी
कलियुग मे प्रकट होने की कथा
इस पहाड़ी के समीप के इलाके मे कुछ गुजरो की आबादी रहती थी. उसमे नैना नाम का गुजर देवी का परम भगत था . वह अपनी गाये भैंस आदि पशुओ को चराने के लिए इस पहाड़ी पर आया करता था. इस पर जो पीपल का वृक्ष अब भी विराजमान है उसके नीचे आकर गुजर की एक गाये खड़ी हो जाती थी . और अपने आप दूध देने लगती . नैना गुजर ने यह दृश्य कई बार देखा. वह यह देखकर सोच - विचार मे डूब जाया करता था के आखिर एक अनसुई गाये के थनों मे इस पीपल के पेड़ के नीचे आकर दूध क्यों आ जाता है . अंतत: एक बार उसने उस पीपक के पेड़ के नीचे जाकर जहाँ गाये का दूध गिरता था वहां पड़े हुए सूखे पत्तो के ढेर को हटाना आरंभ कर दिया. पत्ते हटाने के बाद उसमे दबी हुई पिण्डी के रूप मे माँ भगवती की प्रीतिमा दिखाई दी. नैना गुजर ने जिस दिन पिण्डी के दर्शन किये, उसी रात को माता ने स्वप्न मे उसे दर्शन दिए और कहा की मे आदिशक्ति दुर्गा हु तू इसी पीपल के नीचे मेरा स्थान बनवा दे. मै तेरे ही नाम से प्रिसद्ध हो जाउंगी. नैना माँ भगवती का परम भगत था. उसने प्रात:कल उठते ही देवी माँ की आज्ञानुसार उसी दिन से मंदिर की नीवं रख दी. शीघ्र ही इस स्थान की महिमा चारो तरफ फ़ैल गई. श्रद्धालु भगत दूर दूर से आने लगे. उनकी मनोकामनाए पूरी होती रही. देवी के भगतो ने भगवती का सुंदर, भव्य तथा विशाल मंदिर बनवा दिया और तीर्थ नैनादेवी नाम से प्रिसद्ध हो गया, मंदिर के समीप ही एक गुफा है , जिसे नैना देवी की गुफा कहते है, इसके दर्शनार्थ भी कई भगत जाते है
बोलिए नैना देवी माँ की जय
बोलिए मेरी माँ राज रानी की जय
बोलिए मेरी माँ वैष्णो रानी की जय
बोलिए मेरी माँ दुर्गा की जय
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