विषय-विकार का कारण वस्तुत: स्त्री-पुरष का भेद ही है, प्रभु ने उस भेद को समाप्त कर अभेद अवस्था को प्राप्त कर लिए, अत: वे अवेद - निर्विकार बन गये. भागवत में एक बहुत मार्मिक प्रसंग आता है
एक बार महर्षि वेदव्यास और उनके युवा पुत्र शुकदेव मार्ग से गुजर रहे थे, जंगल का रस्ता था, वेदव्यास आगे-आगे चल रहे , शुकदेव कुछ कदम पीछे- पीछे आ रहे थे, मार्ग में एक सरोवर आया, उसका पानी बहुत स्वच्छ था, कुछ गंधर्व-कन्याए वहा स्नान के लिए आई हुई थी , निर्जन वन, एकांत स्थल , किसी प्रकार का आवागमन नहीं था. इसलिए वह नि:संकोच भाव से सरोवर में जल-क्रीडा का आनंद लेने लगी, कुछ कन्याए स्नान कर रही थे, कुछ तैर रही थी, कुछ वस्त्र धो रही थी, कुछ तट पर खड़ी बाल सुखा रही थी, अचानक वेदव्यास आते दिखाई दिए, तो सारी की सारी संकोचवश तिरोहित होने की चेष्टा करने लगी, कोई पानी में नीचे बैठ गई, कोई तट पर खड़े वृक्षों की ओट में हो गई, कइयो ने वस्त्र अपने उपर डाल लिए, वेदव्यास बिना उनकी तरफ ध्यान दिए सहज भाव से आगे बढ़ गये. थोड़ी ही दूर पीछे से शुकदेव आ रहे थे. वे भी सरोवर के पास से गुजरने लगे. उन्हें देखकर गंधर्व-कन्यायो ने कोई पर्दा नहीं किया. वे नि:संकोच-भाव से जल-क्रीडा में लगी रही, उनमे किसी प्रकार की हलचल नहीं हुई. मानो कोई वहां से गुजरा ही ना हो. अनायास वेदव्यास ने पीछे मुड़कर देखा, उस समय शुकदेव बिलकुल सरोवर के पास से ही गुजर रहे थे, गंधर्व - कन्यायो का यह व्यवहार देखर वेदव्यास चकित रह गये, यह क्या? मै इतना वृद्ध, अठारह पुराणों का करता, तत्वमर्मज्ञ , मुझ से इन कन्याओं ने पर्दा किया, संकोच अनुभव किया और तरुण शुकदेव से कोई लज्जा नहीं, कोई संकोच नहीं, आश्चर्य है, स्त्री को समझ पाना अत्यंत दुष्कर है
वे अपने मन की उथल-पुथल को रोक नहीं पाए, वापस उस सरोवर पर आये, गंधर्व-कन्याओ ने पहले की तरह संकोच किया, वेद व्यास ने कहा. तुम मेरी पुत्रियो के सद्रश हो तथा मै तुम्हारे पिता = पितामह के समान हु, मै तुमसे एक प्रश्न पूछने आया हु. मै इस मार्ग से गुजरा, तुमने संकोच किया, वह स्वाभाविक था. परन्तु शुकदेव के आने पर तुम नि:शंक भाव से अपना कार्य करती रही, मानो जैसे कोई पुरष वहा हो ही नहीं, इसके पीछे क्या रहस्य है? मै यह देखर संशय में पड़ गया. तुमसे इसका कारण जानना चाहता हु.
गंधर्व-कन्याए बोली - महर्षे , आपका प्रश्न यथार्थ है, यह भी सत्य है की आप परम ज्ञानी , उत्क्रष्ट साधक तथा असाधारण तत्वज्ञ है, फिर भी आपकी आँखों में स्त्री-पुरष का भेद तो विद्यमान है ही, यदि भेद नहीं होता तो यह प्रश्न पूछने आप वापस क्यों आते? ऋषिवर! शुकदेव एक शिशु की ज्यो सर्वथा और निर्विकार और निर्वेद है , उसके मन में स्त्री-पुरष का अंतर ही नहीं है, वह केवल आत्मा को ही देखता है, उसकी आँखों में ना कोई स्त्री है, ना कोई पुरष है ना कोई नपुंसक है, जहाँ भेद है, वहां पर्दा है, अभेद में पर्दा नहीं होता, शिशु से माँ कब पर्दा करती है ? क्युकि बालक की आँखों में केवल माँ ही माँ है, दूसरा भेद उसकी दृष्टि में है ही नहीं. वेदव्यास उनके उतर से बहुत संतुष्ट हुए, गंधर्व - कन्याओं का यह कथन उन्हें यथार्थ प्रतीत हुआ की शुकदेव बालक की तरह निर्लेप है, सम्पूर्णत: विकार्शुन्य है और स्वय उनकी दृष्टि में अब तक बेद विद्यमान है.
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