शनिवार, 2 जून 2012

जो कुछ हुआ सों अच्छा हुआ: Jo kuchh Hua Achha Hua By Sanjay Mehta Ludhiana









प्राणियो के सुख और दुःख वास्तव में वासनामात्र है , काल्पनिक है, क्षणिक है, सामान्यत; जो भोग मनोज्ञ लगते है, वे ही आपतिकाल में संकटकाल में रोग जैसे दुःखप्रद लगते है, आदमी को खीर, घेवर, लड्डू आदि मिष्टान्न बड़े ही प्रिय लगते है, उन्हें देखते ही मन प्रसन्न हो जाता है, यदि १०४ डिग्री बुखार हो जाये तो वही भोजन विष जैसा लगने लगता है, उन मिष्टाननो को देखते ही उबकाई होने लगती है, इसलिए प्रिय-अप्रिय वस्तात: क्या है - यह जानता हुआ योगी दोनों सथितियो में अविचल रहता है, कूटस्थ रहता है . जो घटनाये घटित होती है, योगी सबका स्वागत करता है , उसके लिए तो सहज भव से जो कुछ हुआ सों अच्छा , यह परमयोग को झलक है, जहाँ हर स्थिति का समादर होता है



एक राजा था, वह अध्यात्म दृष्टि से बिलकुल शुन्य था. राजा का मंत्री बड़ा तत्वज्ञ और आत्माभिमुख था. एक बार राजा शस्त्रों की धार की तीक्ष्णता की परीक्षा कर रहा था. धार परखने में कुछ ऍसी असावधानी हुई की उसकी ऊँगली कटकर दूर जा गिरी, रक्त की धारा बह निकले, राजा वेदना से कराह उठा, इतने में मंत्री आ गया, राजा ने कहा, महामंत्री! देखो आज कैसा मनहूस दिन है मेरी ऊँगली कट गई, मंत्री ने गंभीर स्वर में कहा - राजन! जो कुछ हुआ, अच्छा ही हुआ है, राजा के क्रोध का पारा चढ़ गया वह कहने लगा - क्या बोलते हो? मेरी उगुंली कटने को तुम अच्छा कहते हो? मंत्री ने शांति से कहा. महाराज! प्रकृति से जो घटित होता है, वह अच्छा ही होता है. राजा ने कहा . ऐसे बेहूदा मंत्री मुझे नहीं चाहिए, मै तुम्हे अपने राज्य से निर्वासित करता हु. तुम शीघ्रताशीघ्र राज्य की सीमा से बाहर निकल जाओ. मंत्री ने तब भी शांति से कहा. जो कुछ हुआ, अच्छा हुआ. मेरे लिए यह निर्वासन भी वरदान तुल्य ही है. राजा का क्रोध सीमा पार कर गया. उसने चीखकर कहा - तुम एक शब्द भी बोले बिना फौरन यहाँ से निकल जाओ. मंत्री वहा से रवाना हो गया और किसी दुसरे राज्य में जाकर रहने लगा..

इधर वैद्यो हकीमो की चिकित्सा से , औषिधि प्रयोग से राजा की अंगुली का घाव ठीक हो गया, पर जो हिस्सा टूटकर अलग हो गया वह नहीं हुआ. छेह महीने बीत गये. कुछ विदेशी घोड़ो के सौदागर अच्छी नसल के घोड़े लिए राजा के यहाँ आये. घोड़े बड़े बलिष्ठ एवम तीव्रगामी थे. एक दिन राजा एक घोड़े पार सवार होकर जंगल की सैर के लिए निकला. कामदार घोड़े पर चढ़े पीछे - 2 चल रहे थे, पार , राजा का घोडा बहुत तेज था, वह इतनी तेजी से दौड़ा की राजा उसे सम्भाल नहीं सका. राजा ज्यो ज्यो उसे ठहराने के लिए लगाम खींचता. वह तेज होता जाता. घोड़े ने उसे घने जंगल में भीलो की बस्ती में ला छोड़ा.

इधर भील चंडिका देवी के मंदिर में पूजोत्सव मना रहे थे, पुजारी ने कहा बलि के लिए हष्ट - पुष्ट आदमी लाया जाये, दुर्गा बलि से संतुष्ट होती है, इतने में राजा वहा आ गया. वे बड़े खुश थे, जैसे आदमी की जरूरत थी, देवी की कृपा से सहज प्राप्त हो गया, उन्हों ने राजा से कहा.- आज आपको सीधे स्वर्ग पौचांगे. देवी माँ के आगे आपकी बलि देंगे. राजा को परोहित के सामने ले गये, और कहा गुरुदेव! बलि के लिए सुंदर नौजवान ले आये. राजा कांप रहा था और क्या करता.

आखिर राजा को परोहित के सामने बिठाया गया , स्नान , विलेपन आदि क्रियाये प्रारम्भ हुए. "चन्दन" लगाये गये. तभी परोहित की दृष्टि अचानक राजा की कटी हुई उंगली पर पड़ी. उसने कहा - यह आदमी बलिदान के योग्य नहीं है. क्यों कि यह अंगहीन है अंगहीन देवी का भक्ष्य नहीं बन सकता. देवी तो अक्षत शरीर चाहती है. इसे छोड़ दो और किसी दुसरे आदमी कि खोज करो. राजा को छोड़ दिया गया. राजा समझ नहीं पाया कि क्या हो रहा था और क्या हो गया?

मंत्री के शब्द राजा कि स्मृति में उभर आये कि "जो कुछ हुआ सों अच्छा हुआ" राजा ने सोचा, मंत्री बड़ा तत्वज्ञ था, मै उसकी गहराई को नहीं आंक सका यदि मेरी यह उंगली नहीं कटी होती तो आज मै जीवित नहीं होता. इस छिन्न ऊँगली ने मुझे नव-जीवन प्रदान किया. राजा ने शहर में आकर तत्काल आदेश दिया कि मंत्री जहाँ भी हो लाया जाए. मंत्री का पता लगा लीया गया. मुस्कराता हुआ मंत्री राजा के सामने उपस्थित किया राजा भी मंत्री को देखर मुस्कराने लगा. महामंत्री ! तुम्हारी बात बिलकुल सही निकली, वह उंगुली का कटना मेरे लिए अद्भुत जीवन दान देने वाला सिद्ध हुआ. तत्काल मंत्री ने कहा. आपके लिए ही नहीं , मेरे लिए भी देश-निर्वासन बहुत उपकारी सिद्ध हुआ. अन्यथा जहा आपका घोडा होता, वहा मै भी आप के साथ होता . वे भील आपको तो अंगहीन मानकर छोड़ देते पर मै तो अंगहीन नहीं था, मुझे वे अवश्य मार डालते, पर आपकी कृपा से मै जीवित बचा हु. इसलिए जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा वह भी अच्छा ही होगा.


Sanjay Mehta







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