शुक्रवार, 4 मई 2012

प्रेरक प्रसंग : Prerk Prasang By Sanjay Mehta Ludhiana








परमात्मा का शुक्र है



दोपहर का वक्त था, शाहजहाँ बादशाह को प्यास लगी, इधर - उधर देखा, नौकर कोई पास नहीं था, उस समय पानी की सुराही भरी हुई पास ही रखी होती थी, उस दिन सुराही में पानी का एक घुट भी ना था, कुए पर पौह्चा , पानी निकलने लगा, ज्योही आगे को झुकर देखा भौनी माथे में लगी, खून निकल आया , खून देखकर कहता है . "शुक्र है! शुक्र है! मेरे जैसे बेवकूफ को जिसको पानी भी नहीं निकलना नहीं आता, मालिक ने बादशाह बना दिया, शुक्र नहीं तो और क्या है?" मतलब यह की दुःख में भी उसने मालिक का शुक्र मनाया




पपीहे का प्रण

कबीर साहिब एक दिन गंगा के किनारे घूम रहे थे. उन्होंने देखा एक पपीहा प्यास से बेहाल होकर नदी में गिर गया है. पपीहा स्वाति नक्षत्र में बरसने वाली वर्षा की बूंदों के आलावा और कोई पानी नहीं पीता. उसके चारो और कितना ही पानी मजूद क्यों ना हो. उसे कितने ही जोर की प्यास क्यों ना लगी हो, वह मरना मंजूर करेगा. परन्तु और किसी पानी से अपनी पास नहीं बुझाएगा.

कबीर साहिब नदी में गिरे हुए उस पक्षी की और देखते रहे, सख्त गर्मी पड़ रही थी और वह प्यास से तड़प रहा था, पर उसने नदी के पानी की एक बूंद भी नहीं पी. उसे देखकर कबीर साहिब ने कहा.

जब मै इस छोटे से पपीहे की वर्षा के निर्मल जल के प्रति भक्ति और निष्ठां देखता हु कि प्यास से मर रहा है, लेकिन जान बचाने के लिए नदी का पानी नहीं पीता, तो मुझे मेरे इश्वर के प्रति अपनी भक्ति तुच्छ लगने लगती है

पपीहे का पन देख के, धीरज रही न रंच
मरते डम जल का पड़ा , तोउ न बोड़ी चंच

अगर हर भगत को परमात्मा के प्रति पपीहे जैसी तीव्र लगन और प्रेम हो, तो वह बहुत जल्दी उचे रूहानी मंडलो में पहुच जाये और अपने इश्वर को पा ले .

जय माता दी जी



Sanjay Mehta







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