किसी रामायण में ऐसा प्रसंग आता है, कि विवाह के पछ्चात रामजी , सीता जी के साथ अयोध्या पधारे, श्री सीता जी को श्री रामजी के चरणों कि सेवा करते - करते मन में थोडा अभिमान जाग गया, रामजी कि अपेक्षाक्रत मै सुंदर हु, मै कोमल हु. अभिमान जिव का पतन करनेवाला होता है, भक्ति करो किन्तु अभिमान छोडो. 'अहम' यदि बढ़ जाता है तो समझना कि भक्ति में भूल हुई है, सभी प्रकार के दोषों को परमात्मा क्षमा कर देते है, परंतु अभिमान परमात्मा से सहन नहीं होता, इसका भार उन्हें अत्यधिक लगता है
सीताजी , रामजी के चरणों कि सेवा करती थी, सीताजी चरण दबा रही थी, परन्तु परमात्मा को आज सीताजी के हाथ का भार सहन नहीं हो रहा था. चरण अत्यंत ही कोमल बन गए, मक्खन के उपर हाथ तिको तो उसपर गड्ढा पड़ जाता है. आज परमात्मा का श्रीअंग मक्खन से भी अधिक कोमल बन गया उन्हों ने सीताजी से कहा - 'तुम्हारे हाथ का वजन मुझ से सहन नहीं हो रहा है, उन्ही (अति कोमल) श्री राम जी को कैकई जी ने आज्ञा दी तब नंगे चरण वन में भी फिरे
हनुमान जी अत्यंत शक्ति है, एक समय हनुमानजी को भी इच्छा हुई कि रामजी को परिचय दू कि मुझमे कितनी शक्ति है. इसलिए जोर जोर से राम जी के चरण दबाने लगे. जिससे कि रामजी को कहना पड़े के बहुत जोर मत लगाओ. रामजी के नेत्र मूंदे हुए थे. हनुमान जी 'सीताराम सीताराम' का कीर्तन करते हुए चरण दबा रहे थे. जोर जोर से मुट्ठी भी लगा रहे थे, हनुमान जी कि ही मुष्टि से किसी समय रावण रुधिर-वमन तक कर चूका है , हनुमान जी का नाम 'बजरंग' मूल शब्द 'वज्रांग' - वज्र के समान कठोर अंग वाले
हनुमान जी आवेश में चरण -सेवा करते हुए मुष्टि -प्रहार कर रहे थे, परन्तु रामजी कि तो निंद्रा तक भंग ना हुई, श्री सीताजी सेवा करे उस समय रामजी कोमल बन जाते है, हनुमान जी सेवा करे तो उस समय वे कठोर बन जाते है, श्री राम जी कोमल है या कठिन? श्री राम दयालु है या निष्ठुर है , श्री राम जी के गुण तो अनंत है ...
|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें