भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत युद्ध में प्रतिज्ञा की थी के वो अस्त्र नहीं उठायेंगे. पर भीषम जी ने कहा था केशव आप को मेरे लिए उठाने होन्गे. अब भगवान अपने भगत की बात को कैसे गलत होने देते. उन्हें युद्ध में रथ का पहिया उठाया, अपने भगत के लिए और भीषम जी यह जानते थे के भगवान ने उन का मान रखा और कहा
"कमललोचन आइए, आइए देवेश्वर जगन्निवास! आपको नमस्कार है, हाथ में चक्र लिए आये हुए माधव! सबको शरण देनेवाले लोकनाथ! आज युद्धभूमि में बलपूर्वक इस उत्तम रथ से मुझे मार गिराइए
श्री कृष्ण! आज आपके हाथ से यदि मै मारा जाऊंगा, तो इहलोक और परलोक में भी मेरा कल्याण होगा, अन्धक और वृष्णि कुल की रक्षा करने वाले वीर आपके इस आक्रमण से तीनो लोको में मेरा गौरव बढ़ गया , आप इच्छानुसार मेरे उपर प्रहार कीजिये, मै तो आपका दास हु' इसी समय अर्जुन जी ने पीछे से जाकर भगवान को अपनी भुजाओं में भर लिए, किन्तु इस पर भी वे अर्जुन को घसीटते हुए बड़ी तेजी से आगे ही बढ़े चले गये, तब अर्जुन ने जैसे - तैसे उन्हें दसवे कदम्पर रोककर दोनों चरण पकड़ लिए और बड़े प्रेम से दीनतापूर्वक कहा "महाबाहो! लौटिये; आप जो पहले कह चुके है की मै युद्ध नहीं करूँगा' उसे मिथ्या ना कीजिये, यदि आप ऐसा करेंगे तो लोग आपको मिथ्यावादी कहेंगे. यह सारा भार मेरे ही उपर रहने दीजिये, मै पितामाह का वध करूँगा, यह बात मै शस्त्र की सत्य की और पुण्य की शपथ करके कहता हु.
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