ब्रह्मज्ञान
ब्रह्मज्ञान की इच्छा रख
धनी महाशय एक
साईं नाथ के सन्मुख आ
बोले माथा टेक
दिया बहुत कुछ ईश ने
धन सँपत्त और दास
जो थी पूर्ण हो गई
हर इच्छा हर आस
अब तो बस ये चाहूँ मैं
ब्रह्मज्ञान मिल जाए
जल्दी से पा जाऊँ तो
जनम सफल हो जाए
साईं मैंने है सुना
देते हो तुम ज्ञान
ब्रह्म दर्शन करवा कर के
कर दो मम कल्याण
बाहर ताँगा है खडा
दिन जाता है ढलता
जल्दी ज्ञान मिल जाए तो
मैं वापिस हूँ चलता
मँद मँद मुस्काकर के
साईं ने फरमाया
धन्य हुआ जो मैंने आज
दर्शन आपका पाया
कितने ही जन आते यहाँ
इच्छा लिए अनेक
ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति को
आप ही आए एक
यहाँ विराजो मित्र तुम
देता हूँ मैं ज्ञान
विरले पिपासु आए तुम
भक्ति भाव की खान
साईं नाथ महाराज ने फिर
बालक एक बुलाया
पाँच रुपये उधार लाने को
उसको था दौडाया
खाली हाथ लौटा था बालक
एक नहीं कई बार
कई जगह पर जा कर भी
लाया नहीं उधार
धनी महाशय हुए अधीर
होती देख अबेर
बोले ब्रह्मज्ञान दो साईं
होती है मुझे देर
तब देवा ने श्री मुख से
मधुर वचन फरमाया
इस सारे नाटक से तुमको
समझ नहीं कुछ आया?
ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति का
सहज नहीं उपाय
मोह माया से ग्रसित जन
कैसे उसको पाय
ब्रह्मज्ञान का अधिकारी
सो ही जानो आप
पाँच वस्तुऐॅ त्यागे जो
हो जावे निष्पाप
पाँच प्राण, पाँच इन्द्रियाँ,
मन, बुद्दि, अहँकार
मुमुक्षु जन त्यागे इन्हें
समझे जीवन सार
बँधन माने माया को
होना चाहे मुक्त
प्रयत्न करे सँकल्प से
हो भक्ति से युक्त
उदासीन हो लोक से
चाहे ना धन मान
विरक्त रहे सँसार से
रमा रहे हरि नाम
अन्तर्मुखी हो मन से जो
इधर उधर ना डोले
लीन रहे परमात्म में
मुख से अमृत घोले
सभी दुष्टता त्याग दे
पाप कर्म को छोडे
पूर्ण शाँत और स्थिर होवे
नाता ईश से जोडे
सत्यवान हो, त्यागी हो
वश में कर ले मन
चित्त शुद्ध हो, सरल हो
उज्जवल होवे तन
ऐसे जीवन साध कर
गुरू कृपा जब होवे
ईश कृपा भी मिले उसे
जग के बँधन खोवे
ब्रह्मज्ञान मिलता नहीं
लोभ मोह के सँग
मन की काली चादर पे
चढे ना कोई रँग
पाँच रुपये के पचास गुना
धरे तुम्हारे पास
लेकिन धन की तृष्णा की
बुझी ना तेरी प्यास
धनी महाशय द्रवित हुए
पाकर मधुर उपदेश
श्री चरणों पर मस्तक टेक
पाया ज्ञान विशेष
जय साईं राम
Sanjay Mehta
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