श्री राम सीता जी की शादी हो रही है. जनकपुरी में ऐसा रिवाज था की जमाईराज जीमने बैठे, उस समय कन्यापक्ष की स्त्रिया ढोलक बजावे और जमाई सुने. इस प्रकार गालिया देकर गावे , श्री राम चन्द्र जी बैठे थे एक स्त्री ने कहा - अरे सखियो अयोध्या की स्त्रियाँ बहुत ख़ास है, खीर खाती है, बालको को जनम देती है, कौशल्या जी ने खाई तो श्री राम जी हुए , केकई जी ने खाई तो भरत जी हो गये और सुमित्रा जी ने खाई तो लक्ष्मण और शत्रुघ्न हो गये.
रामजी ने सिम्त हास्य किया. कितने प्रेम से बोलती है, परन्तु लक्ष्मण जी को यह सुहाया नहीं, उनको खीझ चढ़ी की मेरी माता कौशल्या जी लिए ये लोग परिहास करती है, रामजी लक्ष्मण जी को समझाने लगे. तू क्यों खीझता है ? ये तो परिहास करती है, तू क्रोध मत कर. लक्ष्मण जी ने कहा, परन्तु बड़े भई! इन लोगो में ज्ञान की कमी है, विनोद भी विवेक से करना चाहिए, ये तो मन में जो आवे सों ही बोलती है, फिर लक्ष्मण जी ने कहा, हां अयोध्या की स्त्रियाँ तो बहुत अच्छी है की खीर खाकर बालको को जनम देती है, परन्तु ये जनकपुरी की स्त्रिया ऍसी करामाती है की इनको खीर खाने की भी जरूरत पड़ती नहीं, धरती फटने से ही छोकरिया जन्मती है :) तुम्हारे यहाँ तो ऐसा रिवाज है,
लक्ष्मण जी के ऐसा बोलने से सबको ऐसा विश्वास हो गया की बड़े भाई भोले भाले है, परन्तु ये बहुत प्रबल है, विनोद में भी कोई रामजी का कोई अपमान करे, यह लक्ष्मण जी सह सकते नहीं. जहाँ श्री राम है, वही श्री लक्ष्मण जी है
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Sanjay Mehta
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