मंगलवार, 3 जुलाई 2012

सदगुरु : Guru Purnima By Sanjay Mehta Ludhiana








इस संसार में जो आता है उसको सदगुरु की जरूरत है ही. शास्त्र में लिखा है कि जिसने गुरु बनाया नहीं, उसके घर का पानी भी पीना नहीं, जगत के किसी संत में तुमको सद्भावना हो तो तुम श्री महाप्रभु को गुरु मानो, भगवान शंकराचार्य स्वामी को गुरु मानो, जगत में जो संत हो गये है, उनमे से किसी भी संत को सदगुरु मान कर सेवा करो, परन्तु गुरु किये बिना रहना नहीं, जगत के जिन महापुरषों को परमात्मा का अनुभव हुआ है, उन सब को सदगुरु द्वारा ही प्रभु मिले है

सदगुरु कृपा करे तो सूक्ष्म मन शुद्ध होता है, तुम जप करो, तीर्थ यात्रा करो, यज्ञ करो, दान करो, देवदर्शन करो , कथा सुनो- इन साधनों से तुम्हारा स्थूल मन शुद्ध होगा, परन्तु सूक्ष्म मन सदगुरु कृपा करेंगे तो ही शुद्ध होगा, इसलिए सदगुरुदेव कि बहुत ही जरूरत है, कोई सिद्ध महापुरष माथे हाथ पधरावे कृपा करके अपनावे तो ही सूक्ष्म मन शुद्ध होता है ,

सदगुरु बगैर कल्याण नहीं, कोई सदगुरु चरण का आश्रय लेगा तो सदगुरु कृपा होगी, सदगुरु कृपा करेंगे तो मन - बुद्धि में रहने वाली वासना जाएगी, मन-बुद्धि शुद्ध होगी, मन-बुद्धि के अंदर का मल संत-सेवा बगैर जाता नहीं, मन पर सत्संग का, सेवा का अंकुश रक्खो , बुद्धि को कोई संत के चरणों में रक्खो , बुद्धि परमात्मा के साथ परिणय ना हो तब तक उसे किसी संत के साथ परिणय करा दो, किसी संत के अधीन रहो तो मन-बुद्धि शुद्ध होन्गे.

संत वे है जो मन को सुधारे, सम्पति देकर शिष्यों को सुखी करे वे सदगुरु नहीं, जो शिष्य के मन को सुधारकर शिष्य को सुखी करे वे ही सदगुरु है, कितने ही लोग तो ऐसा बोलते है, महाराज! मुझको आशीर्वाद दो , जिससे मुझको लाटरी लग जाए, कितने ही लोग साधू -संत के पास कुछ लौकिक स्वार्थ रखकर ही जाते है, किसी ने मुझे कहा कोई अंक बताओ, जो कुछ प्राप्त होगा उसे धर्म के कार्य करूँगा. अरे मेरा भगवान कोई भिखारी नहीं कि इस प्रकार पाप करवाकर पैसे ले, आजकल तो लोग ऍसी आशा रखते है . महाराज के आशीर्वाद से मेरे यहाँ पुत्र आवे और मुझे सम्पति मिले.

साधू-संत के पास लौकिक भाव से जो आता है उसे कुछ मिलता नहीं, सच्चा संत किसी दिवस भी सम्पति -संतति , संसार, सुख का आशीर्वाद देता ही नहीं , कारण कि ये जानते है कि अनके जन्म से जीव ये वस्तु प्राप्त करता ही आया है, संसार - सुख अनेक जन्म से भोगता ही आया है, इसको सम्पति मिलेगी तो यह बहुत प्रमादी होगा, विलासी होगा, आलसी होगा, इसमें इसका कल्याण नहीं, , अहित है, संतति, सम्पति, संसारसुख - ये विषयानन्द है, विषयानंद संत देते नहीं, संत तो भजनानन्द देतेहै.

सम्पति देकर सुखी करे, यह काम संत का नहीं. सच्चा संत सम्पति देता नहीं, सन्मति देता है, जो विकार, वासनाका नाश करते है, प्रभु के मार्ग में ले जाते है, भक्ति रंग लगाकर सुखी करते है, वे संत है, जिसके संग में आये पीछे तुम्हारे मन का संकल्प -विकल्प मन की विकार-वासना का नाश हो, प्रभु में कुछ प्रेम जागे तो मानना की ये संत है, सदगुरु है

सदगुरु सदा शिष्य का स्वभाव सुधारते है, सदगुरु सदा शिष्य के मन को सुधारते है, उसके मन में रहने वाली- विकार - वासना काविनाश करके उसके पापो को छुडाते है, और उसको भक्तिरस का दान करते है, सदगुरु की कृपा से ही मन सथिररूप में शांत रहता है, बुद्धि में विवेक जागता है, और ज्ञान स्थिरता आती है, संत बोलकर ही उपदेश देते है, ऐसा नहीं , संत मौन रखकर भी उपदेश देते है, संत की दिनचर्या से बोध मिलता है, संत का प्रत्येक व्यवहार ज्ञान भक्ति से भरा हुआ है

संसार में जो भी आता है, उसको सदगुरु की जरूरत है, संसार में आने के पश्चात् भगवान राम सदगुरु के चरण में बैठे है, भगवान श्री कृष्ण ने सान्दीपन ऋषि के चरण पकडे है, प्रभु ने गुरुदेव के घर में पानी भरा, गुरूजी की सेवा की है, इसी से श्री कृष्ण जगद्गुरु कहलाये है, श्री राम जगद्गुरु कहलाये है, श्रीराम जी बहुत बोलते नहीं, परन्तु रामजी की प्रत्येक क्रिया उप्देश्मय है, रामजी का जैसा बर्ताव रक्खो , रामजी जैसे चलते है, जैसा व्यवहार क्रते है, वैसा अपना जीवन बनाओ, रामजी हृदय के साथ अपना ह्र्ध्य एक करो , यह ही रामजी की उत्तम सेवा है .

Sanjay Mehta







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