रामावतार में तो ये अतिशेय सरल है, रामजी खड़े रहते है तो भी सरलता से .. बालकृष्ण खड़े रहते है, कभी - कभी बांके होकर. इसलिए तो लाला का नाम पड़ा है बांकेबिहारीलाल
श्री बांकेबिहारी की जय
श्री कृष्ण सरल भी तो है, कन्हैया बहुत भोले है, बहुत प्रेमी है, लाला के लिए कोई थोडा माखन - मिश्री ले जाए तो कन्हैया प्रेम से आरोगते है के मेरे लिए माखन लाया है, कन्हैया बहुत सरल है , परन्तु ये जगत को बताते है की मै सरल के साथ सरल हु, परन्तु कोई बांका होकर आवे तो मै भी उसके साथ बांका हो जाता हु..
श्री राम तो सबके साथ सरल है, श्री कृष्ण सरल के साथ है, बांके के साथ बांके है, श्री राम तो रावण के साथ ही सरल है, श्री राम सज्जन - दुर्जन सबके साथ सरल है, जीव का अपराध रामजी देखते नहीं. श्री कृष्ण सज्जन के साथ सरल है, दुर्जन के साथ सरल नहीं है. सुदामा जी आँगन में आये है, ऐसा सुनकर श्री कृष्ण सिंहासन से कूद पड़े और सामने गये, सुदामा जी को आलिंगन किया, परमात्मा श्री कृष्ण सुदामा जी के चरण पखारते है और उनको गद्दी के उपर बैठते है , स्वयं नीचे बैठते है, सुदामा जी सच्चे ब्राह्मण है, इसलिए श्री कृष्ण उनके साथ अतिशेय सरल है, परन्तु श्री कृष्ण महाभारत के युद्ध में द्रोणाचार्य के साथ सरल नहीं है. बांके है. सुदामा जी ब्राह्मण है और द्रोणाचार्य भी ब्राह्मण है. द्रोणाचार्य वेद-शास्त्रों में सम्पन्न ज्ञानी ब्राह्मण है
द्रोणाचार्य साधारण ब्राह्मण नहीं है. चार वेद और छ: शास्त्रों के ज्ञाता है, प्रभु ने विचार किया की बहुत ज्ञाता होने से क्या? वे स्वरूप को भूले हुए है. बहुत ज्ञानवान होकर पाप करे तो ठाकुर जी को गुस्सा आता है. जिसने ज्ञान पचाया है, वह कभी कपट करता नहीं, किसी के साथ अन्याय नहीं करता. कपट करने से ह्रदय बांका होता है. सच्चे ज्ञानी का लक्ष्ण यह है की उसका ह्रदय बहुत सरल होता है, कोमल होता है, और उसका व्यवहार शुद्ध होता है. द्रोणाचार्य जानते थे की युद्ध करना ब्राह्मण का धर्म नहीं, फिर भी वह युद्ध क्रते है, इनको अच्छी तरह खबर थी की दर्युधन अन्याय किया है , फिर भी द्र्युधन की सहायता करने के लिए वे युद्ध करते है.
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