
रामायण में लिखा है कि दशरथ जी महाराज ने कभी रामजी को मुख से नहीं कहा कि तुम वन में जाओ. दशरथ जी महाराज कि जिह्वा कभी बोल सकती ही नहीं कि रामजी वन में जाए, दशरथ जी ने स्पष्ट आज्ञा दी नहीं. यह तो कैकयी जी ने कहा कि तुम्हारे पिता कि इच्छा है, आज्ञा है कि तुम वन में जाओ, तब रामजी बोले कि मेरे पिताजी जी ऍसी इच्छा है तो पिता की आज्ञा का पालन करना मेरा धर्म है -- पिताजी की आज्ञा से मै अग्नि में अथवा समुंदर में कूद पड़ने को तैयार हु, जहर भी पी जाने को तैयार हु
थोडा विचार करो की कैकयी जी ने राज्य भरत को भले ही दिया परन्तु रामजी को वनवास क्यों दिया? रामजी ने कोई अपराध किया नहीं, रामायण में लिखा है की एक बार नहीं , अनेक बार कैकयी जी ने अपने मुख से कहा है की "श्री राम निरपराध है.. श्री रामजी कोई भूल कर सकते नहीं. श्री राम मुझे सब से प्यारा है " तो भी कैकयी जी ने रामजी को वनवास दिया, परन्तु रामजी ने कैकयी जी से एक बार भी नहीं पूछा की मुझे वनवास क्यों देती हो.. माता-पिता की आज्ञा है, प्रभु को खबर मिली तो तुरंत उन्होंने आज्ञा का पालन किया, राजा दशरथ जी ने प्रत्यक्ष आज्ञा दी नहीं, केवल कैकयी जी के कहने मात्र से ही रामजी वन में चले गये. कैकयी जी की आज्ञा अयोग्य है, अनुचित है, परन्तु रामजी ने ऐसा विचार नहीं किया, रामजी तो मानते है की मै अपनी माता - पिता के अधीन हु. अपने माता - पिता की आज्ञा का उल्लंघन करने की मुझमे शक्ति नहीं. श्री रामचन्द्र जी मात -पितृ की भक्ति करनेवाला जगत मे कोई दिखाई देता नहीं. श्री रामचन्द्र जी की मात-पितृ भक्ति अनन्य है
बोलो सियावर रामचन्द्र की जय , जय राजरानी की जय. जय माँ वैष्णो रानी की जय. जय जय माँ. जय माता दी जी
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