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शनिवार, 14 दिसंबर 2013
पावागढ़(गुजरात) की श्री महकालीजी : Sanjay Mehta Ludhiana
पावागढ़(गुजरात) की श्री महकालीजी
जनश्रुति है की श्री कलिका माता जी के शाप से यह नगर ध्वंस हो गया , श्री कलिका जी के मंदिर के पास आश्विनस पक्ष कि नवरात्रि में बराबर गरबा होता है। इस नगर की तथा राजमहल की स्त्रियां एक साथ इकट्ठी होकर श्री माता जी का स्तवनगान करती है। शारदी चंद्रिका में यह उत्स्व बड़ा ही सुहावना होता हअ सारी दर्शकमंडली श्री माताजी के भाव में उन्मत्त होकर आनंदसुधा का पान करने लगती है। सुनते है, इसी प्रकार के आन्दोत्स्व में एक बार जब गरबा हो रहा था तब स्त्रियो के प्रेम से प्रसन्न हो सवयं माता जी एक दिव्या रमणी का वेश धारणकर आयी और स्त्रियों में शामिल होकर गरबा गाने लगी . उस अवसर पर चम्पानेर का राजा पताई जयसिंह भी आया हुआ था। वह माताजी के गरबा के माधुर्य को सुनकर तथा उनकी दिव्या सौंदर्य छटा को देखकर मोहित हो गया। पीछे जब सब स्त्रियों के चले जाने पऱ तब राजा ने श्री कलिका का हाथ पकड़ लिया . माताजी ने कहा "मै प्रसन्न हु तू वर मांग" राजा उन्हें पटरानी बनाना चाहता था। बस फिर क्या था कालिका ने क्रुद्ध हो शाप दिया - "जा छह महीने के अंदर तेरा सर्वनाश हो जायेगा " इतना कहकर अदृश्य हो गयी। मंदिर में सिंह-गरजन होने लगा , पहाड़ जमीन में धंसने लगा और श्री कलिका की मूर्ति भी पहाड़ी में प्रवेश करने लगी। मंदिर के पिछले हिस्से में एक महात्मा रहते थे , उन्हों ने कालिका से विनती की और देवी के सर पर हाथ रखकर कहा - "माँ अब क्षमा करो " बस, देवी उसी रूप में पहाड़ी के साथ वैसी ही अवस्था में रह गयी। आज भी देवी का सिर ही दिखलायी देता है , पावागढ़ के नष्ट होने पर अहमदाबाद , सूरत और आधुनिक बड़ौदा शहर बसे अस्तु ! (संजय )जय माता दी जी
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