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रविवार, 10 नवंबर 2013
ज्ञानेशवर और चांगदेव : Sanjay Mehta Ludhiana
सवयं प्राप्त कि हुई योगसिद्धि के बल से चांगदेव १४०० वर्ष जिए थे। उन्होंने मृत्यु को चौदह बार वापस लौटाया। वे सिद्धियों में फंसे हुए थे। उन्हें प्रतिष्ठा का मोह था। उन्होंने संत ज्ञानेश्वर कि कीर्ति सुनी। चांगदेव ज्ञानेशवर के प्रति मत्सर करने लगे। क्या यह बालक मुझसे भी बढ़ गया ? ज्ञानेशवर कि आयु सोलह वर्ष की थी। चांगदेव कि इच्छा हुई कि ज्ञानेशवर को पात्र लिखे , किन्तु पत्र में सम्बोधन क्या किया जाये ? ज्ञानेशवर अपने से छोटे केवल सोलह वर्ष को - सो 'पूज्य' तो कैसे लिखा जाए ? और ऐसे महाज्ञानी को 'चिरंजीवी' भी कैसे लिखा जाए ? और इस उलझन को वे सुलझा ना सके सो बिना लिखे ही पत्र भेज दिया। संत कि भाषा संत जान सकते है। वे कोरा भी पढ़ लेते है।
मुक्ताबाई ने पत्र का उत्तर दिया। १४०० साल की तेरी आयु हुई, फिर भी तू कोरा ही रह गया। चांगदेव ने सोचा कि ऐसे ज्ञानी पुरष से मिलना ही चाहिए। अपनी सिद्धियों के प्रदर्शन के लिए उन्होंने बाघ पर सवारी की और सर्प की लगाम बनाई और इस प्रकार वे ज्ञानेशवर से मिलने के लिए आ रहे थे।
इस और ज्ञानेशवर से किसी ने कहा चांगदेव बाघ पर सवारी करके आपसे मिलने आ रहे है। ज्ञानेशवर ने सोचा कि इस बूढ़े को अपनी सिद्धियों का अभिमान हो गया है। चांगदेव ने अपनी सिद्धियों के अभिमान के कारण ज्ञानेशवर को पत्र में 'पूज्य' शब्द से सम्बोधित नहीं किया था।
ज्ञानेशवर ने सोचा कि चांगदेव को कुछ पाठ पढ़ाना चाहिए। संत मिलने आये तो उनकी आवभगत करनी चाहिए। उस समय ज्ञानेशवर चौके पर बैठे हुए थे। उन्होंने चौके से चलने कि आज्ञा दी। पत्थर का चोका चल दिया। चौके को चलता हुआ देखकर चांगदेव का अभिमान नष्ट हो गया।
चांगदेव ने महसूस किया कि मैंने हिंसक पशुओ को ही वश में किया जब कि ज्ञानेशवर के पास तो ऐसी शक्ति है , जो जड़ पदार्थ को भी चेतन बना देती है। दोनों आपस में मिले। चांगदेव ज्ञानेशवर के शिष्य बन गए
यह दृष्टांत सिखाता है कि हठयोग से मन को नियंत्रित करने की अपेक्षा प्रेम से मन को बस में करना उत्तम है। चांगदेव हठयोगी थे , जबर्दस्ती से उन्हों ने मन को वश में किया था।
योग मन को एकाग्र कर सकता है, किन्तु ह्रदय को विशाल नहीं कर सकता। यही कारण है की चांगदेव ज्ञानेशवर से ईर्ष्या करते थे। ह्रदय को विशाल करती है भक्ति। भक्ति से ह्रदय पिघलता है, विशाल भी होता है , ईर्ष्या करने वालो को तो इहलोक और परलोक दोनों बिगड़ते है। मन में ईर्ष्या मत रखो। मन से ईर्ष्या निकाल दोगे तो संजय मेहता के ईश्वर मनमोहन का सवरूप मन में सुदृढ़ होगा।
अब कहिये जय माता दी
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