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रविवार, 21 जुलाई 2013
बाबा बाबा सब कहे, मैया कहे न कोय । बाबा के दरबार में, मैया करे सो होय : Sanjay Mehta Ludhiana
बाबा बाबा सब कहे, मैया कहे न कोय ।
बाबा के दरबार में, मैया करे सो होय । ।
बाबा ठहरे परमात्मस्वरूप निष्क्रिय शुद्ध, बुद्ध इत्याति… उनके पास जायँ भी तो किस तरह? जिस शुद्ध बुद्धि की सहायता से बाबा के समीप पहुंचना होता है, वह बुद्धि ही माँ है ।
'या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता। '
अत: पिता के निकट पंहुचने के लिए माता के ही शरणापन्न असल में माँ के पहचान करा देने से ही तो वे पिता है, नहीं तो पिता है कहाँ ? और यदि है भी तो इसका प्रमाण क्या है?
इधर यह भी कि पिता के पुत्र-मुख देखने के बहुत ही पहले माँ उसे देखती है और तदनुकूल कर्तव्य स्थिर करती है. माता पुत्र-मुख को देखकर भीषण प्रसव वेदना को भी भूल जाती है
स्वयं पूर्णब्रह्म श्री रामचन्द्र माता जानकी को गर्भावस्था में वन में भेजने से नहीं हिचकते-- यह नहीं सोचते कि पुत्रो की वन में क्या दशा होगी? परन्तु माता जानकी पुत्र के भूमिष्ठ होते ही उसे महावन में मुनि की कुटिया में सन्तान को अपने कलेजे से लगाकर लालन-पालन करती है. इसी कारण आज भी सुर्यवंश का नाम बना हुआ है और इसी कारण आज भी भक्तवृन्द 'जय सीताराम ' की ध्वनी करते है.
' हे देवि~ तुम (ब्रह्मिरूप) से इस जगत की सृष्टि करती हो, तुम (वैष्णवीरूप) से इसका पालन करती हो, तथा अंत में (रोद्रिरूप) से तुम्ही इसे भक्षण करती हो. इस प्रकार बार बार क्रमश: सृष्टि-स्थिति-प्रलयारूप त्रिविध अवस्थापन्न इस विश्व को एकाकिनी होती हुई भी तुम ब्राह्मी, वैष्णवी और रोद्रीरूप धारण करती हो।
जय माता दी जी
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Sanjay Mehta
गुरुवार, 18 जुलाई 2013
तुम बसी हो कण कण अंदर : tum Basi ho Kan Kan Ander Maaa : Sanjay Mehta Ludhiana
तुम बसी हो कण कण अंदर
तुम बसी हो कण कण अंदर माँ, हम ढूढंते रह गये मंदिर में |
हम मूढमति हम अनजाने माँ सार, तुम्हारा क्या जाने || तुम बसी.......
तेरी माया को ना जान सके, तुझको ना कभी पहचान सके |
हम मोह की निंद्रा सोये रहे, माँ इधर उधर ही खोये रहे |
तू सूरज तू ही चंद्रमा, हम ढूढंते रह गये मंदिर में || तुम बसी हो कण कण अंदर
हर जगह तुम्हारे डेरे माँ, कोइ खेल ना जाने तेरे माँ |
इन नैनों को ना पता लगे, किस रुप में तेरी ज्योत जगे |
तू परवत तु ही समंदर माँ, हम ढूढंते रह गये मंदिर में || तुम बसी हो कण कण अंदर
कोइ कहता तुम्ही पवन में हो, और तुम्ही ज्वाला अगन में हो |
कहते है अंबर और जमी, तुम सब कुछ हो हम कुछ भी नहीं
फल फुल तुम्ही तरुवर माँ, हम ढुढंते रह गये मंदिर में || तुम बसी हो कण कण अंदर
तुम बसी हो कण कण अंदर माँ, हम ढुढंते रह गये मंदिर में |
हम मूढमति हम अज्ञानी, माँ सार तुम्हारा क्या जाने ||
मंगलवार, 9 जुलाई 2013
जगज्जननी जगदम्बिके!
जगज्जननी जगदम्बिके!
महिषासुरमर्दिनी निर्बल संतान को शक्ति प्रदान कर सामर्थ्यवान बना …श्रद्धा और भक्ति दे जिससे तेरे ऊपर अटल विश्वास और तेरे चरणारविन्द में अखण्ड अनुराग हो. कुपात्र के ऊपर घृणा ना कर माँ । यदि तू ही विमुख हो जाएगी तो अन्यत्र आश्रय ही कहा मिलेगा माँ … दे विध्या जिससे सुपुत्र बन सकूँ ... दुःख दूर कर या दुःख सहन करने की शक्ति दे माँ । क्युकि भूखा प्यास बालक माता का ही स्मरण करता है ... मुझे इस दुःख में देखकर और अज्ञानगर्त में धँसता देखकर भी तू चुप है माँ . क्या तेरी सन्तति का यह करुण क्रन्दन तुझे तिलमिला नहीं देता? क्या मै भूल कर रहा हु माँ? क्या तुझे मै नहीं जानता? क्यों नहीं, खूब अच्छी तरह पहचानता हु माँ । तू मेरी माता है. वेद और शास्त्र भले ही तुझे अनिर्वचनीय , निर्गुण और साकार कहे… भले ही कोई स्थूल और सूक्षम के झगडे में पड़े, पर मै तो तुझे दयामयी माता ही कहूँगा.
मै तेरे स्थूल, सूक्ष्म, सगुण, निर्गुण, साकार और निराकार आदि के झमेले में ना पड़कर तुझे अपार कृपा का सागर कहूँगा माँ । हे दयामयी ! अपने कृपासागर का एक बिंदु मुझे दे दे माँ … बस। उसके मिलते ही तेरे चरणारविन्दमकरन्द का मधुकर बनकर नि:शंकभाव से यही भनभनाता रहूँगा … माँ ....
जय माता दी जी
माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■ माँ ■
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Sanjay Mehta
शनिवार, 6 जुलाई 2013
सती शाण्डिली : Sati Shandili : Sanjay Mehta Ludhiana
सती शाण्डिली
अत्यन्त प्राचीन काल में कौशिक नामक एक अत्यन्त क्रोधी, निष्ठुर और कोढ़ी ब्राह्मण था जिसकी पत्नी पतिव्रता और निष्ठावती थी . वह सुशीला स्त्री अपने बीभत्स रूपवाले पति को ही सर्वश्रेष्ठ देवता समझती थी . एक बार रात के समय अपने पति को कंधे पर वह कही ले जा रही थी, रस्ते में माण्डव्य ऋषि ने उसके पैर का धक्का लग जाने पर शाप दिया की यह पुरुष सूर्य उगते ही मर जाएगा … पतिव्रता ने कहा -''अच्छा , यदि इसी बात है तो जब तक मै नहीं कहूँगी तब तक सूर्य उगेगा ही नही । बात भी ऐसी ही हुई . पतिव्रता के वचन कभी असत्य हो ही नहीं सक्ते. सूर्यदेव की गति रुक गई . सूर्य दस दिन तक नहीं उगे. इस पर समस्त ब्रह्माण्ड में हलचल मच गई .
सब देवताओं ने जाकर प्रसिद्ध सती अत्रि पत्नी अनसुयाको प्रसन्न किया अनसूया शाण्डिली के पास गई और उसको सूर्यादय होने देने के लिए यह कहकर राजी किया की 'तुम्हारे पति के प्राण-त्याग करते ही मै अपने पातिव्रत से उन्हें जीवित और स्वस्थ कर दूँगी.' आधी रात को अर्ध्य उठाकर सूर्य का उपस्थान किया गया . पतिव्रत से आज्ञा पाकर खिले हुए रक्त कमल की तरह लाल-लाल सूर्य भगवान का बड़ा मंडल हिमालय पर्वत की चोटी पर उदय होने के लिए आया
इसी के साथ पतिव्रता शाण्डिली का पति कौशिक प्राणरहित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े . उस समय अनसूया ने जो वचन करे वे चिरस्मरणीय है
'यदि पति के समान दुसरे पुरुष को मैंने कभी ना देखा हो तो मेरे इस सत्य के प्रभाव से यह ब्राह्मण रोग से मुक्त हो जाए . यह फिर युवा हो जाये और पत्नीसहित सौ वर्ष जिये. यदि पति के समान और किसी देवता को मै नहीं मानती तो इस सत्य के प्रभाव से यह ब्राह्मण रोगरहित होकर जी जाये। यदि मै सदा मन, वचन और कर्म से पति की आराधना में ही लगी रहती हु तो मेरी इस पति भक्ति के प्रभाव से यह ब्राह्मण फिर जीवित हो जाये'
ब्राह्मण रोगरहित और युवा होकर उठ खड़ा हुआ और अपनी प्रभा से अजर और अमर देवता की तरह गृह को प्रकाशमान करने लगा। शाण्डिली और अनसूया के पातिव्रत - धर्म की महिमा विश्व में फ़ैल गयी .
रावन-सरीखे महायोद्धा को अपने तेज से कंपा देना, यमराज को जीतकर पति के सूक्ष्म शरीर को लौटा लाना, ब्रह्मा,विष्णु, महेश को लीला से ही बच्चे बना देना, तेज से ही पापी व्याधा को भस्म कर डालना और सूर्य को उदय होने से रोक देना - भारतीय पतिव्रतधर्मपरायणा देवियों के लिए ही सम्भव थ. हाय! आज नारी शक्ति इसी पातिव्रत-धर्म को भूलकर श्रीहत हो रही है. और इसी में उन्नति मानी जाती है.
जय सीता मैया जी की . जय माता दी जी की
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