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बुधवार, 2 जनवरी 2013
शक्ति तत्व : Shakti Tatv : Sanjay Mehta Ludhiana
श्री दुर्गा जी दुर्गतिनाशिनी है। दुर्गति को विनिष्ट करने के वीरता की आवश्यकता है। वीर सिंह-समान शत्रुओ को भी अपने वश में रखता है। इस बात की शिक्षा देने के लिए उनका वाहन सिंह है
प्रलयकाल में ब्रह्मांड शमशान हो जाता है जीवों के रुण्ड -मुण्ड इधर - इधर बिखरे रहते है। इसलिए परमेश्वर अथवा परमेश्वरी को लोग चिता -निवासी और रुण्ड -मुण्डधारी कहते है। क्युकि उस समय उनके अतरिक्त दुसरे की सत्ता नहीं रहती।
माता के भय से पापी राक्षसों के रक्त-मॉस सुख जाते है अतएव कवियों ने कल्पना की है कि वे रक्तमांस का उपयोग करती है। मार्कंडेयपुराण में लिखा है कि वे युद्ध के समय मद्य पीती थी। मद्य और मधु से अभिप्राय अभिमान अथवा उन्मत्तता करनेवाला आचरण का है। इश्वर दीनबंधु और अभिमान-द्वेषी है। उनमे अभिमान की मात्रा भी नहीं है।
सर्वव्यापक होने के कारण वे सब दीशाओ में व्याप्त है, जो उनके वस्त्र के समान है। इसी से उनका नाम दिगंबरा है।
परमात्मा निराकार रहकर भी सब काम कर सकते है। पर वे दिव्या मूर्ति धारण करते है कि जिसमे लोग अपने बाल-बच्चो के साथ मूर्तिपूजा कर शीघ्र हमें प्राप्त करे।
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Sanjay Mehta
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